सोमवार, 24 दिसंबर 2012

3-श्रध्धेय माता श्री कृष्णा देवी ताम्रकार

प्रातः स्मरणीय परम पूज्य माता जी 
श्रीमती कृष्णा देवी ताम्रकार 



ॐ  जय  जगदीश  हरे , प्रभु , जय  जगदीश  हैरे  .

भक्त  जनों   के  संकट  क्षण  में  दूर  करें ..

जो  ध्यावे  फल  पावे , दुःख : मिटे , मन से ..

सुख -संपत्ति  घर  आवे , कस्ट  मिटे  तन  से ..

मात  -पिता  तुम  मेरे , शरण  गहूं  किसकी ,

तुम  बिन  और  न  दूजा , आस  करू  किसकी ..

तुम  पूरण  परमात्मा  तुम  अंतर्या
मी ,

पर्ब्रम्ह  परमेश्वर  तुम  सबके  स्वामी ..

तुम  करूणा   के  सागर , तुम  पालन -करता ,

मै   मूर्ख  खल -का
मी  कृपा  करो  भरता ..

तुम  हो  एक  अगोचर , सबके  प्राणपति ,

किस  विधि  मिलूं  दयानिधि , मै  तुमको  कुमति ..

दीनबंधु  दुःख :हरता  तुम  ठाकुर  मेरे ,

अपने  हाँथ  उठाओ , द्वार  पड़ा  तेरे ..

विषय , विकार  मिटाओ , पाप  हरो  देवा ,

श्रद्धा  भक्ति  बढाओ , संतान  की  सेवा ..

ॐ  जय  जगदीश  हरे , प्रभु , जय  जगदीश  हरे ..

(भगवन  और  भक्त  की  जय  हो
)
     अपने बच्चो को अच्छे संस्कार दें 

         संस्कारवान माता-पिता बच्चो के चरित्र की नीव बाल्यावस्था में ही डालते है, जबकि दिशा विहीन कर आचरण हीन बनाने में भी प्रमुख हाँथ उन्ही का होता है. उनके निर्माण में सबसे बड़ा हाँथ अभिभावकों  का है. बच्चो के स्थूल शरीर  तथा संस्कार उन्ही से पूर्ण रूपेण प्रभावित रहते है. बच्चे न तो जन्मजात महापुरुष होते है न असफल व्यक्तित्व. ये दोनों ही परिस्थितियाँ बाल्यावस्था की नीव के आधार पर विकसित होती है, जो परिवार की छत्रछाया में सजती और संवरती है. 
         बच्चो में नया उत्साह रहता है इसे चाहे जिस दिशा में नियोजित किया जा सकता है. एक पक्ष सृजनात्मक है तो दूसरा पक्ष ध्वंसात्मक. वर्तमान समाज के निर्माण में उनसे नई आशाएं की जा सकती है तो इसके विपरीत इनकी बृद्धि करने की परिस्थितियां भी निर्मित हो सकती है. यह उनकी दिशा-निर्देशन पर आधारित है.रचनात्मक दिशा के आभाव में यह शक्ति भटककर निरर्थक ही व्यय हो जाती है. अभिभावकों द्वारा घर की पाठशाला में इसके सदुपयोग हेतु प्रयास किया जा सकता है. जो आज आवश्यक है. याव्युव्को में बढ़ी हुई उच्छ्रिन्खलता, उदंडता, अनुशासनहीनता, स्वेच्छाचारिता एवं बुराइयों के उत्पन्न होने का मूल कारण अन्यत्र नहीं उनके अभिभावकों में है. यह उनकी संतान के प्रति गैर जिम्मेदारी का ही प्रतिमान है. संतान की उदंडता, अनैतिकता का रोना रोने वाले अभिभावकों की कमी नहीं है. वे इसका दोष सामाजिक वातावरण पर मढ़कर स्वयं पाक साफ बचना चाहते है. किन्तु समाज का यह दूषित वातावरण कहाँ से आ टपका? आखिर जो इसे दोषी ठहराते है, उनका भी तो सहयो इसमें अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है. सभी अभिभावक इस ओर ध्यान दे और स्वयं की जिम्मेदारी समझते हुए अपनी संतान को सही दिशा देने लगे तो आज की प्रतिकूल अवस्थाएं स्वयमेव ही अनुकूल बन जायेगे. एक बात और कहना चाहूगी. की बच्चे कारखाना के पुर्जे नहीं है इसलिए एक विशेष नमूने के अनुसार उनके चरित्र को ढालने की बात सोचना उपयुक्त नहीं, सही ही गुण, कर्म, स्वभाव में बच्चा एक दुसरे से मिलता नहीं है. उपयोगी आदर्श नागरिक एवं परिजन बन्ने के लिए दया, विनम्रता, नि:स्वार्थता, सहनशीलता, धीरता दुसरे के प्रति सम्मान और सहानुभूति की भावना आदि गुण आवश्यक है, उन सद्गुणों का बालको में आरोपण करने का उत्तरदायित्व अभिभावकों का ही है. 

Give your children good manners



           Grooms parents put children in early childhood is the foundation of character, while also leading to poor behavior without a direction is tackled him. Construction is the largest in the hearth of their parents. Children's physical body and the values ​​of those affected live fully. Children are neither innate nor fail noble personality. Both scenarios are developed based on the foundation of childhood, the family is under the umbrella adorned and Snvrti.


           Whether it is a new enthusiasm in the direction in which children can be employed. The other side is a subversive creative side. The current building society they may be new hopes to the contrary, an increase of these conditions, can be built. Their direction - the direction is based on. Lack of creative direction roaming the power is futile expenditure. Efforts by parents to home school it can be utilized. Which is essential today. Uchcrinklta Yawyuvco increased, Udndta, indiscipline, the root cause of liberty and the evils arising elsewhere are not their parents. This is the same pattern of irresponsibility towards their children.
           Udndta of children, parents Crying is no shortage of immorality. They want to avoid the blame on the social environment is Mdhkr pious self. But in a society where it's coming from contaminated seepage environment? After all, it is to blame, even if they Shyo it is inextricably linked. Chahugi say one thing. No parts of the baby factory of the samples according to their character or negotiating a suitable way, the same attributes, karma, nature is not the child meets one another. Useful to create a model citizen and family kindness, humility, selflessness, tolerance, patience, respect for others and a sense of empathy etc. is necessary qualities, virtues that parents of little children is the responsibility of the implants.

जीवन में अपनाएं दूसरों के सद्गुण....

दूर रहे निंदा करने की प्रवृत्ति से
यह बात सौ फीसदी सच है कि गुण और दोषों से इस संसार की रचना की गई है। इनसे मनुष्य ही नहीं समस्त प्राणी प्रभावित हैं। सभी में गुण और दोष पाए जाते हैं। यह हमारी दृष्टि पर निर्भर है कि हम उसमें पहले गुण देखते हैं अथवा दोष।

परंतु यह ठीक नहीं होगा कि हम केवल दोषों को देखें और गुणों की ओर ध्यान ही न दें। श्रीमद्भगवद् गीता में कहा गया है कि इस संसार में दोषरहित कुछ भी नहीं है।

अतः अच्छा यह होगा कि जब किसी के अवगुणों का बखान किया जाए तो उनके गुणों की भी चर्चा कर ली जाए। परंतु देखा गया है कि जब लोग किसी की निंदा करना शुरू करते हैं तो उसके गुणों की ओर ध्यान ही नहीं देते। एक पक्षीय निंदा की जाती है।
दरअसल यह बात याद रखनी चाहिए कि निंदा से लोगों के बीच व्यक्ति की छवि खराब होती है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्रभावित होता है। गीता में भगवान ने भी कहा है कि अपकीर्ति या निंदा, मरण से भी अधिक दुखदायी होती है, इसलिए इससे बचना चाहिए।

अतः किसी की निंदा करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनजाने में उस व्यक्ति के साथ अन्याय तो नहीं कर रहे हैं? कहा भी गया है कि 'निंदा करने का उसी को अधिकार है, जिसका हृदय सहानुभूति से भरा है।'

यह निश्चित है कि व्यक्ति में यदि अधिक दोष हैं तो उसके निंदकों की संख्या भी अधिक होगी, परंतु विडंबना यह है कि निंदा करते समय व्यक्ति स्वयं के दोषों को भूल जाता है। 
कबीरदासजी कहते हैं-

'बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥'

इस तरह यदि अपने दोषों को ढूंढ कर उन्हें दूर करने का स्वभाव बना लिया जाए तो निंदा करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है।

दरअसल दोषों को जान कर उन्हें दूर करने के प्रयास ही हमें निंदा से बचाते हैं। यह भी सच है कि आज तक कोई भी व्यक्ति निंदा से बच नहीं पाया है। बडे-बड़े विद्वानों के दोष गिनाए जाकर उनकी निंदा की जाती रही है।  
 


लोग भगवान राम और कृष्ण की निंदा करने में भी नहीं चूके, फिर आम इंसानों की क्या बिसात। निःसंदेह कई बार द्वेष के कारण भी झूठी निंदा की जाती है। निंदक हजारों प्रशंसा सुनकर भी निंदा करके ही संतुष्ट होता है।

इसलिए बुद्धिमानों को झूठी निंदा की चिंता नहीं करना चाहिए। उन्हें अपना कर्तव्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करते रहना चाहिए। यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि सद्कार्य सूर्य के प्रकाश की तरह होते हैं। वे छिपाए नहीं छिपते। वे हजारों झूठी निंदाओं पर भारी पड़ते हैं।

निःसंदेह असफल लोग ही निंदक बन जाते हैं, लेकिन यह प्रवृत्ति किसी के लिए लाभदायक नहीं है। बहरहाल किसी की निंदा करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। किसी के अवगुणों की चर्चा करने की बजाए उसके सद्गुणों की चर्चा करने का स्वभाव बनाना चाहिए।

सद्गुणों की चर्चा से व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है। समाज को उसके सद्कार्यों से प्रेरणा मिलती है। इसलिए व्यक्ति की निंदा करने की बजाए उसके सद्गुणों की प्रशंसा करने की प्रवृत्ति ही कल्याणकारी है।  

om jai jahdeesh hare, prabhu, jai jagdeesh hare.
bhakt jano ke sankat kshan me door karen..
jo dhyawae fal pawe, dukh: mitai man se,
sukh-sampatti ghar aawe, kast mite tan se..
mat-pita tum mere, sharan gahoon kiski,
tum bin aur na dooja, aas karoon kiski..
tum pooran parmatma tum antaryani,
par bramh parmeshvar tum sambe swami..
tum karuna ke sagar, tum palan-karta,
mai moorkh khal-kami kripa karo bharta..
tum ho ek agochar, sabke pranpati,
kis vidhi miloom dayanidhi, mai tumko kumti..
deenbandhu dukh:harta tum thakur mere,
apne hanth uthao, dwar pada tere..
vishay, vikar mitao, paap haro deva,
shraddha bhakti badhao, santan ki seva..
om jai jagdeesh hare, prabhu, jai jagdeesh hare..


bhagwan aur bhakt ki jai ho

                                                      
prastuti: pradeep singh taamer
(mujhse miliye facebook par)

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