मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

24 - कान्स्यकारों, तमेरो के हैहय वंशी होने के प्रमाण

                                                 https://www.facebook.com/haihayvanshi.marriagebureau 

कान्स्यकारों, तमेरो, ठठेरो, ताम्रकारो, टम्टा, बढेरा के हैहय वंशी होने के प्रमाण
ॐ श्री गणेशाय नमो नमः ॐ 

1- विद्या वारिधि "प0ज्वाला प्रसाद मिश्र" ने स्वरचित "जाती भास्कर पेज 262 में कसेरे जाती का वर्णन करते हुए पदम् पुराण कालिका महात्म्य के श्लोको द्वारा पुष्टि की है की कन्श्यकार जाति हैहय वंशी क्षत्रिय है, ये श्लोक इसी ब्लॉग की भूमिका दिया जा चूका है। 

1 - Vidya doctoral "pandit Jwala Prasad Mishra," said Swrcit "race Bhaskar page 262 Kassere race described padaṁ mythology Kalika majesty's Sloko confirmed by the Kanshykar race Haihay descent Kshatriya, these verses this blog's role be has.



2- हैहय वंशी नरेश महाराज उद्धव देव ने हैहय कुल रक्षक, श्री कर्ण मंडल ऋषि के वंशजो को 07 ग्राम दान में दिए थे, ये निम्न प्रकार से है---
किशनदास पुर , मुकुंद पुर , ओसानपुर , बेनीपुर , मिश्रपुर , पुरवाधनु, पुरवातिलक 

              ये सातो ग्राम मॉल गुजारी उन्मूलन तक ऋषि वंशज सरयू पारी तिवारी श्री श्री 108 महावीर प्रसाद तिवारी के परिवार में रहे, इस परिवार की पुरोहिताई सदियों से हैहय वंशियो में चली आ रही है और आज भी हमारे पुरोहित तिवारी वंश के ब्राम्ह्णो द्वारा किया जा रहा है, तिवारी वंश भी प्रायः हर जिले में आपको मिल जायेगे। इस वंश के पुराने पुराहितो के पास हमारे वंश से सम्बंधित काफी दस्तावेज आपको मिल जायेगे।

2 - Hahy descent Naresh Maharaj Uddhav Dev Hahy Total defender, Mr. Rishi Karna Board Vanshjo donated 07 grams, these are as follows ---
Kisndas Pur, Mukund Pur, Osanpur, Benipur, Misrpur, Purwadnu, Purwatilk
         These are seventh Village Mall by georgy elimination rishi Prasad Sri Sri 108 Scion shift sarayu TI TI are in the family of Maha, the purohit of vanshiyo family has been in ages haha and today, our offspring by brahman priestly Ti,  TI descent often you will get mixed in each district. The descendants of the old Purahito related to our descendants, will get you a document.


3- पंडित श्री मुन्नी लाल जी कोसी वासी ने स्वरचित पुस्तक कांस्यकार प्रकाशिका में ब्रम्ह भट्ट की हस्त लिखित पुरस्तक के आधार पर जो संक्षिप्त इतिहास लिखा है, उनसे कसेरो, तेमेरो को चन्द्र वंशी महाराज धर्म पाल की संतान बताया गया है। 

3-Pandit Shri munni Lal JI Kosi vasi, squatter book written in purastak of bramh Anand Bhatt concourse prakashika by hand which wrote a brief history, temero to cook kasero, children of the religion described Chandra vanshi sails.

4- रतनपुर के दीवान बाबू कविवर रेवा राम जी "रतनपुर का इतिहास" नामक पुस्तक में लिखते है की महाराज ताम्रध्वज से ही तमेर जाति की उत्पत्ति हुई है।
4-Babu Ram Dewan of ratnapura quiver Reva g-book called "history of ratnapura," Cook writes in the tamradhvaj race from tamer.


5- रेव् रेन्ड द्वारा लिखित हिन्दू जरिया नामक पुस्तक 1872 इसवी में लिखी गई थी, उसके दसवे अध्याय पेज 212 में लिखा है, की गाजीपुर , उत्तर प्रदेश जिले में हैहय वंशियो का मान क्षत्रियो में उच्च्तम था। वे अपने को रतनपुर अधिश्वरो के वंशज बताते है। 
           पेज 321-322 पर कसेरा के बारे में लिखा है, कि ये लोग सभी यज्ञोपवीत पहनते है। 

5 - written by Rew Rend Hindu way the book was written in 1872 AD, is written in the tenth chapter, page 212, in Ghazipur, Uttar Pradesh district Kshtrio Hahy Vanshio value was the highest. They are the descendants of Ratanpur Adishwaro explains.
            Tinker on pages 321-322 is written about, is that they wear the sacred thread.

6- क्रूक साहब द्वारा लिखित पश्चिमोत्तर प्रान्त और अवध की जातीया में कसेरो के बारे में लिखते है राजपूतो के पहले वे ही देश के राजा थे। मिर्जापुर वालो का कथन है की 4-5- पुस्त (पीढ़ी) पहले वे नासिर गंज शाहाबाद से आये, 
     लखनऊ वाले कहते है की वे क्षत्रिय है उनमे एक कथा प्रचलित है की परशुराम ने क्षत्रियो का विध्वंश किया उनमे एक गर्भवती स्त्री थी जिसकी रक्षा कर्ण मंडल ऋषि ने की। उसके वंश वाले कसेर कहलाये। उनका असली घर रतनपुर में था। 

6 - Northwestern Provinces and Oudh by Mr. Crook Kssero in Jatia to write about, the Rajputs before they were the king of the country. Mirzapur members states, the 4-5 - library (generation) before Nasser came from Shahabad Ganj.
      Lucknow Kshatriya who say that they are the ones that destruction of a legend prevalent that Parashurama Kshtrio, whom was a pregnant woman, whose defense of Rishi Karna Board. The Ksser be called his sons. His real home was in Ratanpur.


7- सन 1931 को भारत वर्ष की जनगणना में कसेरा और ठठेरा अपने को क्षत्रिय और सहस्त्राबाहू के वंशज बताते है। वे यज्ञोपवीत धारण करते है, मांस मदिरा का उपयोग नहीं करते , किसी के हाथ का कच्चा भोजन नहीं करते, केवल अपनी जाती वालो का बनाया हुआ  ही खाते है। 
7 - In the year 1931 India census plumber plumber and the descendants of the Kshatriyas and Shstrabahu explains. They wear the sacred thread, do not use meat, wine, raw food, do not do any hand-made ​​by your community members have the same account.

8- कनिगहम की आर्कपोलोजिकल सर्वे खंड 6 के पेज 227 में लिखा है मिर्जापुर के कसेरा अपने को क्षत्रिय बताते है वे हैहय वंशी  मयूरध्वज आदि के वंशज है।
8 - Kanigham's Archopological page 227 of Volume 6 of the survey is written in  Mirzapur plumber explains the Kshatriya descent Hahy Mayurdwaj etc. He is descended.

9- मध्य प्रान्त की जातिया 
    रसेल व रायबहादुर हीरालाल द्वारा लिखित खंड 4 पेज 536 के अनुसार मध्य प्रदेशके कसेरे, तमेरे और ठठेरे अपने को हैहय वंशी क्षत्रिय बतलाते है वे रतनपुर वाले राजो के वंसज है कहते है। की राज धर्म पाल की 120 रनिया थी, उन्ही के वंशज कसेरे, ठठेरे और तमेरे हुए। ये लोग यज्ञोपवीत पह्न्नते मदिरा नहीं पीते , मांस विरले ही खाते है। सिंह वाहिनी माँ दुर्गा जी और काली जी का पूजन करते है और वे अपने मुख्य स्थान मंडला और रतनपुर का बताते है। 

9 - Central County Casts

     Written by Russell and Hiralal Raybhadur accordance with Section 4 Page 536 Kssere Madhya Pradesh, Tmere and tinker describe the Hahy Kshatriya descent, he is a descendant of Rajo who Ratanpur, says. 120 Rania of King Dharmapala had descended on them Kssere, tinker with and Tmere. They wear the sacred thread intermediary and do not drink alcohol, eat meat sparingly. Singh Ji and black G worship Durga Vahini and they tell their principal place of Mandla and Ratanpur.



10- तवारीख शाहाबाद "नामे मुजफ्फरी" में जनाब मुंशी मुहम्मद मुजफ्फर हुसैन खा साहब सिलेमानी, शाहाबाद, उत्तर प्रदेश रचित पेज संख्या 165 में लिखते है ---
       जिस जगह पर अब यह कस्बा शाहाबाद आबाद है, एक कस्बा अंगयी खेड़े के नाम से बसता था। और उसमे ठठेरो की कौम आबाद थी। एक किला चाँद गाड़िया बनायीं थी। ठठेरो व सूरत एक खुद मुख्त्यार रियासत के थी।

10 - historical Shahabad "debit Mujffri in" Mr. Muzaffar Hussain Muhammad Munshi Sahib Silemani eat, Shahabad, Uttar Pradesh is composed writes --- Page Number 165
        The place is now manned Shahabad town, a town called Angyi Kede resided. And he was Ttero populate the community. A fort was constructed railway moon. Muktyar own homestead was a Ttero and Surat.


11- तवारीख आफ ताब अवध मुसन्निफ़ मिर्जा मुहम्मद तकी साहब लखनवी तरजुमा, गजेतिअर सरकारी में पेज 166 में लिखा है, की ठठेरो का निकलना और उनके बाद और क्षत्रियो का हाल और तरक्की, दिरेराखन की कामयाब लड़ाईया, उनकी और बाद अजान शाहाबाद और तालुका बास्त नगर का तकर्रुर तवारीख वाक्यात से मालूम होता है की ठठेरो की आबादी अंगाई खेडा में थी, जिसकी जगह पुर विल्फेल शाहाबाद बांके है। 
11 - of historical Musnnif Qaida Awadh Mohammed Mirza Sahib Lucknowi Trjuma Takei, Gajetiar government is written in the page 166 of lactation and after Ttero Kshtrio conditions and promotion, Direrakn Ldhaiya managed, and the darkness he Shahabad and Taluka Bast the city's population Tkrrur Angai Ttero of historical incident seemingly was in Kheda, which is rather handsome rewards Vilfel Shahabad.


12- बुल्देल्खंड का ऐतिहासिक नगर झाँसी के महाराज श्री गंगाधर राव थे, उनका शासन काल विक्रम संवत 1816 से 1910 तक रहा, इनके शासन काल में एक समय यज्ञोपवीत के विषय को लेकर झाँसी नगर में काफी बखेड़ा हुआ, महाराज गंगाधर राव ने यज्ञोपवीत पहनने वाली जातियों को तामा एवं लोहा के तार को गरम कर दंड देने की व्यवस्था बनाई थी, उस समय़ झाँसी राज्य में केवल यही वातावरण घर घर छाया रहा था।

      उस समय तमेरो की समाज ने भी अपना जन्म सिद्ध अधिकार यज्ञोपवीत (जनेउ)उतारने की बात पर मर मिटने का निश्चय किया था, किन्तु शासन की ओर से तमेरो को जनेउ पहनने का अधिकारी मानकर कोई भी प्रश्न नहीं उठाया गया।

      इसी बात की पुष्टि उपन्यास सम्राट स्वर्गीय डाक्टर ब्रिन्दालाल वर्मा ने अपने उपन्यास झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई नामक पुस्तक के पेज 501 में की है। इसी पुस्तक के पेज 50 से 53 तक जनेउ का बखेड़ा विस्तार से लिखा हुआ है। इन अंग्रेजी और उर्दू के विद्वानों  में मतानुसार सिद्ध होता है, की भारत में सर्वत्र कसेरे, तमेरे, और ठठेरे अपनी उत्पत्ति रतनपुर के हैहय वंशी राजाओं से बतलाते है परंपरा से इस प्रकार के कथन के विशेष महत्त्व है- निम्न लिखित छंद भी उपरोक्त प्रमाणों की पुष्टि करते है --------

Tamero society of that time his birthright thread (Janeu) was determined to die at the point of unloading, but as a rule entitled to wear the Jneu to Tmero not raised any questions.

      Heavenly Emperor doctor confirmed this novel Rani Laxmi Bai of Jhansi Brindalal Varma's novel is 501 pages in the book. Janeu scene of the book to page 50 to 53 are written in detail. In the opinion of the scholars in English and Urdu is accomplished, Kassere throughout India, Tamere, and tinker with its origin Haahay Ratanpur kings indicating descent from the tradition of this type of statement is especially important - the following verses of the above evidence -------- CONFIRM



छंद घनाक्षरी 
चन्द्र कुल ययाति के, तनय तुर्वशु हित 
लक्ष्मी सूत शंभू दियो, हैहय कुमार है।
नाम आधार हैहय वंश प्रख्यात मध्य,
जन्मे श्री सहस्त्रबाहु, शक्ति में अपार है।
बाहु पुत्र और सेन, आपात कालीन कांस्य 
पात्र निर्माण कार्य, कीन्हा ब्यापार है।
यत्र तत्र बसे हिन्द, वंशज वीर सेन के 
"प्रचंड" श्रेष्ठ क्षत्रिय कहाए कांस्यकार है।

पुनश्च 

सतयुग में हैहय, एकावीर महाबली,
तिनके नाम हैहय, वंश बाढो अपार है।
त्रेता में सहस्त्रबाहु, विश्व विजेता भये,
परशुराम युद्ध मध्य हुए संहार है।
द्वापर दान शिरोमणि, मोरध्वज पुत्र श्रेष्ठ,
ताम्रध्वज वीर से, हारे पार्थ करतार है।
कलि में निर्माण पात्र कला करें, हिन्द माँह 
ताम्रध्वज वंशज ही , हुए ताम्रकार है।।

बर्तन कारोबारियों का मूल इतिहास


प्राचीन काल से ही जीवन यापन के लिए जिस तरह से रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता रही है ठीक उसी प्रकार जीवन यापन (भूख को मिटाने) के लिए खाद्यान्नों को पकाने और बनाने के लिए बर्तनों का आविष्कार, समय के अनुसार बनता और बदलता रहा है, तथा प्राचीन काल से ही, जब से धातु के बर्तनों का प्रयोग शुरू हुआ तभी से लेकर आज तक बर्तन के कार्य को बनाने और उनका व्यापार करने वाले विभिन्न स्थानों और रूपों में विभिकराते आ रहे है. समय के साथ बर्तनों के रूप और पद्धिति में बदलाव आया, जिससे आज का बर्तन उद्योग और उसका कार्य और व्यापार करने वाले भी प्रभावित हुए है| इतिहास गवाह है, की जब धातु नहीं थे तब मिटी के बर्तनों का प्रयोग बहुधा हुआ करता था, और सभी लोग उसी बर्तन का उपयोग जीवन यापन के लिए करते थे| जब से धातु खनिज का आविष्कार हुआ तब से वर्तमान तक, विभिन्न धातुवो के बर्तनों का प्रयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है. वर्तमान में स्टील, प्लास्टिक, फाइबर और बोंन-चाइना के बर्तनों का प्रयोग शुरू हो गया है, जिसमे स्टील ने धातु  के बर्तनो का प्रयोग बहुत हो रहा है|  जिसके कारण हस्थ निर्मित बर्तनों का बाजार और उपयोगिता कम हो रही है जिसका एक कारण तो उनका महंगा होना है तो दूसरी ओर महगाई और कारीगरों की अनुपलब्धता के कारण यह उद्योग बंद हो रहे है, क्योकि इनकी लागत और मूल्य अन्य प्रकार के उपलब्ध बर्तनों की तुलना में अत्यधिक है| प्राचीन काल से ही धातु के बर्तन को पिट-पिट कर ठक-ठक की आवाज़ होने के कारण उक्त समूह के कार्य करने वालो के ठठेरा नाम से पुकारा जाने लगा था, बाद के समय में यही धातु के विभिन्न प्रकार के बर्तनों के रूप देने वालो जैसे की कांसा धातु के बर्तन बनाने वाले को कसेरा, तांबे के बर्तनों के निर्माण करने वालो को तमेरा अदि, जिसमे विभिन्न समुदायों के कारीगर एक समूह में साथ रह कर एक दूसरे के कार्य में सहयोग प्रदान करते थे और बर्तनों के वास्तविक स्वरुप में आने के बाद उनको बाज़ार में बेचा जाता था, इसके लिए पुरे देश में जगह जगह पर बरतन के एक व्यापार केंद्र हुवा करते थे जो प्रायः ठठेरा बाजार, ठठेरा गली और कसेरा बाजार, बर्तन वाली गली या बर्तन बाज़ार के नाम से जाने जाते थे और वर्तमान समय में भी यह नाम प्रचालन में है|  इसमे यहाँ यह बतलाना अत्यधिक उचित होगा की ठठेरा कोई एक जाति वर्ग नहीं था जैसा कि उअसका प्रचालन बाद के समय में होता आ रहा है, पुरे भारत में यह कार्य व्यापक रूप से विभीन जाति धर्म के लोगो द्वारा किया जाता रहा है और इसका व्यापार पुरे देश में उस काल परिवेश के रूप में समझा और जाना जाता रहा है| पुराणों ग्रंथो से लेकर आज के आधुनिक सामाजिक पुस्तकों/लेखो में कही भी यह कार्य और व्यापार करने वालो को एक जाति से नहीं जाना जाता है नहीं इसका कही के सरकारी दस्तावेजों में इसकी प्रमाणिकता है| अब हम उक्त कार्य के करने वाले एक समूह के कार्य इतिहाश और जीवन शैली पर प्रकाश डालना चाहते है की आज के इस आधुनिक युग में उस समूह/वर्ग की क्या सामाजिक स्थिति है, और वह वर्ग/समुदाय  क्यों एक उच्च जाति का होते हुए भी हीन-दीन और पिछड़ा हुवा है| आइये हम उस वर्ग के इतिहास का हमें इसके लिए थोड़ा पुराणों का ज्ञान करना होगा, जिसमे आप यदि परशुराम – सहस्त्रबाहु युद्ध के बारे में जानते हो तो इस जाति के बारे में और अच्छी तरह से समझ सकते है| यह समुदाय जाति वास्तव में एक क्षत्रिय जाति है जोकि चन्द्रवंश की शाखा हैहयवंश में महाराज सहस्त्रबाहु के वंश से जाने जाते है|  हम पुराणों के माध्यम से सहस्त्रबाहु के जीवनी को भली भाति जान सकते है| जिसमे इस क्षत्रिय जाति का सात बार ऋषि परशुराम द्वारा पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का कार्य किया गया जोकि ऋषि होते हुए भी स्वंय एक क्षत्रिय थे, फिर भी क्षत्रियों का पूर्ण विनाश नहीं कर सके थे, क्योकि उस विनाश में ही क्षत्रियों ने अपना स्वरुप और कार्य बदल लिया था, जिससे वह उनकी पहचान नहीं जान सकते थे और फिर वह युद्ध स्वत: समाप्त हो गया| क्षत्रियों ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों में लिप्त हो गए थे, जिसमे से एक कार्य धातु का निर्माण रहा, क्योकि क्षत्रिय् गुण के कारण धातु के प्रयोग के बारे में जानकारी उन्हें पहले से ही थी जोकि शस्त्र-निर्माण, रक्षा सामग्री निर्माण का कार्य स्वत: किया करते थे तो वो बड़े ही आसानी से इस कार्य करने वाले समूह में छिप कर अपनी जान बचा ली थी| परशुराम – सहस्त्रबाहु युद्ध तो समाप्त हो गया पर परशुराम के पिता द्वारा दिया गया अभिशाप से यह जाति और समाज आज भी बाहर नहीं निकल पा रही है जबकि हम वर्तमान में कलयुग में जी रहे है| युगों  के परिवर्तन के साथ तो सब कुछ बदल जाता है पर यह श्राप जो की भय के रूप में इस समुदाय का पीछा कर रही हो अभी तक बाहर नहीं निकल पा रहा है| श्राप के अलावा सामजिक आर्थिक असुरक्षा-अज्ञानता के कारण तथा एक लंबे समय तक अपना कार्य और स्वरुप बदल देने के कारण भी हम अपनी पहचान पुनः पाने के लिए संघर्ष शील है| इस समुदाय/जाति के लोग अब जैसे जैसे शिक्षित हो रहे है और इतिहास का उन्हें ज्ञान हो रहा है लोग अपने क्षत्रिय्ता को पाने के लिए व्याकुल भी हो रहे है| इतिहास गवाह है की किसी के लिए भी समय कभी एक नहीं रहा है बहुत से जाति समुदाय का पतन हुवा है तो बहुत से नै समुदाय जाति का उदय भी हुआ है, जो लोग कल तक सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े और दबे हुए थे वो आज आगे बढ़ रहे है और देश समाज उनको उच्च स्थान दे रहा है, और बहुत सी समुदाय जाति समाप्त और पीछे होते जा रहे है तो यह परिवर्तन हमेशा होता है और होता रहेगा| जब भी जागे तभी सबेरा और सफलता के लिए शुरुवात जरूरी है अत: हमे सारे भेद भाव छोड़ कर एक जुटता के साथ अपनी खोयी हुयी क्षात्रिता और पहचान को पुनः से बनानी चाहिए| जिसके लिए आज पूरी समुदाय-जाति अपने अपने तरीके और सुविधा अनुसार विभिन्न जगहों पर अपनी अपनी ज्ञान और शक्ति के साथ संगर्ष कर रहे है, इतना तो अवश्य बदलाव आया है की हर व्यक्ति जो उस समुदाय को जानता और समझता है उसे पुन्ह स्थापित करना चाहता है| लोग शिक्षित और ज्ञान ले रहे है जोकि एक बड़ा माध्यम है अपने इतिहास को समझाने और जानने का बिना उस ज्ञान के सफलता नहीं मिलेगी. यह सभी को समझना होगा| कोई नही जाति के विकास और उत्थान के लिए यह जरूरी हैं की पहले वह अपने इतिहास का ज्ञान रखे, हम क्या थे क्या है और कैसे हमारी पहचान बने इस पर भी विचार करना होगा तभी हम अपनी खोई हुयी क्षात्रिता और समग्रता को पा सकते है| हमें यह नहीं भूलना चाहिए की कण-कण से पृथ्वी का निर्माण हुआ है और बूंद बूंद से ही सागर का निर्माण जिसके निर्माण में किसी कण या बूंद की विषमता और बनावाट या उसकी आकार नहीं देखी गयी है, ठीक उसी प्रकार से हमें भी एक बृहद स्वरुप को पुन्ह से अपने वास्तविक रूप में लाने के लिए सभी को एक करना होगा तभी महाराज राज राजेस्वर सहस्त्रबाहु- हैहयवंश क्षत्रिय समाज के उस सामाजिक स्वरुप को स्थापित कर पाएंगे| इतिहास ही नहे यह वास्तव में सच है की बरतन का कार्य मुलत: इसी जाति के लोगो द्वारा किया जाता है पर उसके रूप अलग अलग प्रदेशो और जगहों में अलग अलग है, कही बहुत ही पुरानी शब्द ठठेरा का प्रयोग बहुधा में होता आ रहा है तो कही जगहों पर कसेरा, कुछ एक प्रान्तों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र,राजस्थान  के कुछ भागो में कंसारा, पच्छिम बंगाल,  बिहार में शाह और कुछ प्रान्तों और जगहों पर वर्मा, सिंह, राजपूत और चंद्रवंशी, हयारण भी लिखे जाती है, वर्तमान में कुछ समुदाय के लोगो ने एक बृहद स्वरुप पाने के लिए अपना मूल रुल हैहयवंशी क्षत्रिय जाति के हैहयवंशी शब्द का प्रयोग करना और लिखना शुरू कर दिया है जो कि आने वाले समय में  निश्चित ही अपनी क्षत्रिय्ता की प्राप्ति के लिए एक सराहनीय प्रयास होगा| वास्तव में यदि में इतिहास के पन्नों को पढ़े जिसमे सभी पुराण, महाभारत और गीता प्रमुख: है तो हमें इसका ज्ञान अवश्य हो जाएगा की हम क्या थे क्यों हमारा मूल स्वरुप बदला और आज हम क्यों संघर्ष कर रहे है| हमें अपनी पहचान कर्म और धर्म कभी नहीं भूलना चाहिए, क्योकि यही हमारे संस्कार को बताता है और बिना संस्कार के मानव जीवन बेकार है| हमारा हैहयवंश क्षत्रिय समाज, सिर्फ अपने प्रान्त, देश तक  सीमित नहीं  है वरन यह समाज विश्व के हर कोने में है बस हमें इसके पहचान करने और एक सूत्र में पिरोने के लिए एक सम्मिलित प्रयास करने की आवश्यकता है, और यह तभी संभव हो सकेगा जब हम स्वयं शिक्षित और शशक्त होंगे और अपने इतिहास को अपने गौरव को जानेगे तभी हम दूसरों को इसका ज्ञान देकर उन्हें भी इस इतिहास धर्म से जोड़ संकेगे, पहले हमें खुद को सुदृढ़ एवं शशक्त बनना होगा फिर धीरे धीरे लोगो एक जुट कर एक विशाल संगठन का निर्माण करना होगा| हम एक थे एक है और एक बनेगे यह हमारा विश्वाश है| यह सच है की वर्तमान में हमरा कोई एक भी शशक्त संगठन राष्ट्र स्तर पर सक्रिय नहीं है जिसके कारण अलग अलग जगहों पर विभिन्न लोगो के द्वारा किये जा रहे प्रयास का कोई विशेष लाभ समाज को नहीं मिल पा रहा है| पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी संगठन धीरे धीरे ही संगठित हो कर ही विकास किया है अत: हमें भी इसका प्रयास जारी रखना होगा| कोई भी समाज एक दूसरे के सहयोग के बिना नहीं चल सकता है अत: श्री राज राजेश्वर महाराज  सहस्त्रबाहु,  हैहयवंश क्षत्रिय समाज के संस्कार और उनके आदर्शो  को  जीवित रखने के लिए हमें एक होना ही पडेगा, इसके लिए जो भी जरूरी हो हमें हर तरह से हर स्तर पर प्रयास करना चाहिए| सहयोग आपसी भाई चारा और परस्पर सम्पर्क एक दूसरे की मदद कर हम इसे  बड़े ही आसानी से प्राप्त कर सकते है|
                                                                                                                         डा० वी एस० चन्द्रवंशी
हैहय वंशीय ताम्रकार समाज की प्रमुख सत्तियों का संक्षिप्त विवरण 
भारत की पावन भूमि, जहा क्षत्रिय वीर अपनी आत्मोत्सर्ग एवं बलिदान की भावना के लिए प्रसिद्द है,  दूसरी ओर भारत की देविया भी उनसे किसी अंश में पीछे नहीं रही, या यो कह लीजिये की राजपूतो की राजपूती में चार चाँद लगाने वाली उन क्षत्रिय वीरो की धर्म पत्नियाँ है, वे अपने पति के शव के साथ अपने जीवित शारीर को दग्ध करके प्रसिद्धि रुपी प्रकाश को बिखेरने में पीछे नहीं रही। हैहय वंश के इतिहास में इसी प्रकार की अनेक सत्तियाँ हुई है, जिसमे से कुछ प्रमुख सत्तियों के नाम नीचे दिए है--
१      महिस्माती नरेश महाराज नील्ध्वाज और वीर अरजुन के युद्ध में नील्ध्वाज वीर गति को प्राप्त हुये, इनकी महारानी ज्वालादेवी भागीरथी (गंगा) के किनारे सती हो गई थी। 

      गर्ग संहिता अश्वमेघ खंड चौदहवा अध्याय में नील्ध्वाज के पिता  का नाम इन्द्रनील भी बताया गया है, इन्होने द्वारिका धीश श्री बलराम, श्री कृष्ण के अश्वमेघ अश्व को रोककर अनुरुद्ध से युद्ध किया तथा श्री भगवन शंकर की आज्ञा से अनुरुद्ध से संधि की। 

२     रतनपुर नरेश  श्री महामाया जी के मंदिर के आसपास हैहय वंश की सत्तियो के अनेक स्मारकों के अवशेष विद्दमान है। यहाँ पर "बीस दुवरिया" नामक अत्यंत रमणीक सती मंदिर है। यहाँ हैहय नरेश लक्ष्मन से की २ रानियाँ सती हुई थी, वैसे रतनपुर में और भी अनेक सत्तियो के स्मारकों के अवशेष पाए जाते है।
३     रायपुर हैहय वंशी राजाओं की लुहरोट शाखा की राजधानी रही है, इस वंश की अनेक सत्तियो के स्मारक यहाँ है, जिनके नाम सत्ती - बाजार का नाम आज भी प्रख्यात है। लगभग ५० वर्ष पूर्व रायपुर निवाशी श्री पूरण लाल जी कसेर के स्वर्गवासी होने पर इनकी धर्म पत्नी सती हुई थी, ऐसा सुना जाता है।

४     त्रिपुरी नरेश महाराज गांगेय देव का स्वर्गवास प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ। प्रयाग के अक्षय वट के नीचे  इनकी १०० रानियाँ सती हुई थी।
५     सोन्ठी नरेश सूर्यदेव के प्रपौत्र ०४ भाई थे, इनमे से एक राजकुमार के स्वर्गीय होने पर ३ रानियों के सती होने के विवरण शिवरी नारायण के शिलालेख में मिला है।

६-     त्रिपुरी नरेश शंकर्गन के दीवान की पत्नी कमला देवी जबलपुर जिले के सेमरा ग्राम में पति के मृत्यु पर सती हुई।

७-     गढ़ौला जागीर खुराई से पूर्व १० मील की दूरी पर स्थित है। बस्ती के दक्षिण में एक बगीचा है, यह बगीचा तमेरों के बगीचा के नाम से आज भी प्रख्यात है। बगीचा के भीतर एक चबूतरा है, जिसको बट बृक्ष के जड़ों ने जकल लिया है। चबूतरे पर चरण रखे हुए है, इसके समीप ही दूसरा चबूतरा है, जिस पर एक सत्ती चौरा विद्दमान है, यह सटी हैहय वंश के बड्वार गोत्र की है। सत्ती के वंशज वर्तमान के विदिशा नगर में मौजूद है।

८-     बड़ोय-पठारी में ताम्रकारो और बागडियो के संघर्ष के अनेक सत्ती हुई, जिनके अधिकांश सत्ती चौरा अभी भी देखे जा सकते है।
९      हिन्दोरिया- दमोह जिले में दमोह नगर से करीब ११-१२ किलोमीटर की दूरी पर है, यहाँ लुह्रौत गोत्र में श्री सुखलाल के स्वर्गीय होने पर इनकी परम पत्नी सती हुई, यह सत्ती चौरा अभी भी विख्यात है।

       छतरपुर क्षेत्र में कांठी - बरखुवां नाम का एक ग्राम है, यहाँ पर लुह्रौत गोत्र की एक सत्ती का स्मारक  है। हटा निवासी स्व० चौधरी श्री छोटे लाल के कथानुसार किसी युद्ध में पति के धाराशाई होने पर पत्नी सती हो गयी थी।

१० -    तालबेहट- वर्तमान समय सागर निवासी श्री मगन लाल जी पहलवान के पूर्वजो का निवास तालबेहट में रहते थे।  तालबेहट नगर से झाँसी की ओर थोड़ी ही दूरी पर एक सती स्मारक है, यह सती स्मारक मगनलाल जी पहलवान के पूर्वजो के नाम श्री बाल मुकुंद जी थे।  इन्होने एक श्री हनुमान जी का मंदिर भी बनवाया था, जो अभी भी विद्दमान है।

१२-     झाँसी में स्वर्गीय श्री राम भरोसे मुखिया जिनका गोत्र बडवार है, इनके प्राचीन मकान में इनके पूर्वजो में एक सती हुई थी।

१३ -    दतिया से ४० - ४५ किलोमीटर पर बड़े ग्राम में जसाठी गोत्र की सटी का स्मारक है।
                       इसी प्रकार से कटनी में, रहली में, टीकमगढ़ में भी सती स्मारक पाए गए है।


               Brief description of society's major Sattion septal Hahy Coppersmith

Religion wives, they live with her husband's body to burn body-like fame and was second in the scattering of light. Hahy family history is similar in many Sattiaँ, which is below the names of some major Sattion -
1 Mahismati Nildhwaj Naresh Maharaj and Veer Veer Arjun Nildhwaj achieve speeds are at war, his Highness Jwaladevi Bhagirathi (Ganga) in the Sati fell.

      Garg Code section fourteenth chapter Ashwmeg Nildhwaj Indranil's father's name is mentioned, virtually Dwarka Dish Sri Balarama, Krishna Ashwmeg Anuruddh preventing horse fought and made peace with Mr. Lord Shankar Anuruddh pace.

King Sri Mahamaya Temple of Ratanpur around 2 g Sattio Hahy lineage remains of numerous monuments is Viddman. Here "Twenty Duvria called" sati temple is very idyllic. Sati was 2 queens of King Lcshmn Hahy here, as in many other Sattio Ratanpur the remnants of the monuments.

Raipur Hahy descent Luhrot branch of Kings 3 is the capital, the number of offspring Sattio memorial here, namely Satti - the name of the market is still celebrated. Raipur Niwashi almost 50 years ago when Mr. compensating Lal Ji Ksser departed wife Sati was his religion, it is heard.

4 Tripuri Naresh Maharaj died galactic Dev Prayag (Allahabad) happened. Akshay Vat Prayag Sati was below its 100 queens.

04 great-grandson of the King of Sonti Surydev 5 brothers, 3 of them being a prince of the heavenly queens Shivri Narayan inscription found in the details of sati.

6 - Tripuri king's wife Kamala Devi Diwan of Shankrgn Semra village of Jabalpur district was sati on her husband's death.

7 - Gdhula manor is located 10 miles east of Khurai. A garden in the south of the township, it is still known by the name of the garden is the garden Tmeron. Within the garden is a terrace, which has physical roots of the tree butt. Step on the terrace is keeping it close to the platform on which the Satti Chaura Viddman, it is adjacent to the tribe Bdwar Hahy descent. Satti's descendants Vidisha currently exists in the city.

8 - Broy - Tamrkaro in Plateau and Satti Bagdio had numerous conflicts, most of which still can be seen Satti Chaura.

9 Hindoria - Damoh Damoh district about 11-12 kilometers from the city, here is his ultimate Luhrut gotra Mr. Suklal's late wife was Sati, Satti Chaura it is still known.

       Kanti in Chhatarpur - Brkhuwan name of a village, but here Luhrut Satti is a monument of the tribe. Residents removed predictably self 0 Ch Mr. Little Red in a war Dharashai husband became the wife Sati.

10 - Talbeht - current time resident Mr Magan Lal Ji wrestler Purwajo Sea Talbeht lived in the residence. A short distance from the city to Jhansi Talbeht Sati monument, the monument sati maganalaal g wrestler named Mr. Bal Mukund G was Purwajo. He also built a temple of Sri Hanuman, who is still Viddman.

12 - Late Shri Ram trusted leader in Jhansi is Bdwar every tribe, them in their ancient houses Purwajo was a sati.

13 - Datia from 40-45 kilometers adjacent to the large village of the tribe Jasati monument.
                       Similarly, in Katni, in Rhli, Sati monument in Tikamgarh found.




हैहय वंशीय ताम्रकारो एवं कान्स्य्कारो के गोत्र 

हैहय वंशी राजाओं के वैवाहिक सम्बन्ध राजघरानो में ही होते थे। व्यवसायी, कृषक, सैनिक या अन्य नौकरी करने वाले वैवाहिक संबंधो को अपनी बराबरी के लोगो के साथ किया करते थे। कालांतर में जैसे जैसे समय बीतता गया, सभी हैहय क्षत्रिय अपने अपने दायरे में बंधते चले गए और अपने वैवाहिक सम्बन्ध भी उसी के अनुसार करने लगे। 
      जैसे जैसे समय समय बीतता गया, वे सभी अपने अपने व्यवसाय के अनुसार जाति के रूप में भी परिवर्तित होते गये, यही मुख्य कारन है, की आज बहुत से जातियां अपने को हैहय वंशी क्षत्रिय कहती है। जिसके सम्बन्ध में गोत्र वर्णन में स्पस्ट रूप से देखा तथा समझा जा सकता है। विशेष कारणों से लोगो को पृथक पृथक नाम से पुकारा जाता था। अधिकांशतः पूर्वजो, किलो एवं स्थानों के नाम से पुकारे जाते थे। उदहारण के रूप में सहसपुर के निवासी- सहस्पुरिया कहलाये यही शब्द नाम उनके गोत्र का निर्माण होने में अथवा बनाने में सहायक हुआ। आज भी गोत्र का अर्थ एक ही परिवार के रूप में माना जाता है, तभी हैहय वंशी ताम्रकार समाज एक ही गोत्र के लोगो के घरो में शादी/व्याह नहीं करते है। एक कुटुंब के लोग व्यवसाय नौकरी एवं अन्य कारणों से अन्यत्र जाकर बस गए और वह पर भी ये लोग उसी गोत्र के नाम से पहचाने और बुलाये जाते है। 
      यही कारण है की एक ही गोत्र के लोग यत्र - तत्र पाए जाते है। हैहय वंशी क्षत्रिय कांस्यकार एवं ताम्रकार समाज के गोत्रो के अनुरूप गोत्रो के नाम राजपूत एवं अन्य क्षत्रिय (ठाकुरों) समाज में भी पाए जाते है, इससे ऐसा ज्ञात होता है की, हैहय-क्षत्रिय समाज भी अन्य क्षत्रिय समाज का ही एक अंग ही है। क्षत्रिय की छतीस कुरी के राज्पूरो में हैहय वंशियो का स्थान "जाति भास्कर" के पेज २ ८-२ ९ में दिया गया है। 
       समय की गति एवं व्यवसाय की भिन्नता के कारण आज हम आप सभी एक दुसरे के संबंधो को विस्मृत हो गए है एवं एक सीमित दायरे (जातीयता) की सूत्रता में बंधकर रह गए है। बघेले, कलचुरी, सेंगर, चौहान, खमेले, गुह्लौत, उसेवा, विल्कता (विल्कैत) आदि गोत्र ऐसे है, जो आज भी कांस्यकार एवं ताम्रकार क्षत्रिय समाज के अतिरिक्त अन्य क्षत्रिय समाज में भी पाए जाते है। 


 Tribe of septal

Haihay Rajghrano descent in marital relations were kings. Businessmen, farmers, military or other job equals the marital relationship with the logo used. Over time, such as the passage of time, to unite all Haihay warrior moved their scope and accordingly began their marital bond.
      As time passed, they all have their own business as the change in the race, is the main cause of many nations today, says the Haihay Kshatriya descent. Specify description about which tribe can be seen and understood. Special reasons people were called insulated. Most Purwajo, KG and locations were known,. As an example, a resident of Sahaspur - Shspuria called the same word or contribute to their tribe was being built. Meaning of the tribe still considered as a single family, only the people's homes Haihay descent Coppersmith society wedding in the same gotra / Wyah / marrige do not.
      That is why the people of the same tribe sporadic occur. Kshatriya descent Haihay Kansykar and Coppersmith society Gotro suit names Gotro Rajput and Kshatriya (Thakur) is also found in society, as this is known, the Haihay - other Kshatriya Kshatriya community is a part of society. Thirty-six of the girl in the Rajpuro Haihay Vanshi kshatriy location of Kshatriya caste "Times" is the page 2 8-2 9.
       Baghele, Kalchuri, Senger, Chauhan, Khamele, Guhlut, Usewa, Vilkta (Vilkat), etc., that the tribe which still Coppersmith Kansykar and other Kshatriya Kshatriya society is found in society.

सहस्पुरिया - हैहय यशोराज के वंशजो का शासन प्राप्त होने पर यत्र - तत्र पाए जाते है जो इधर उधर जा बसे है और इन्होने अपना गोत्र सहस्पुरिया बताया , जो अपभ्रंश में सहसपुरिया , भाषान्तर  में छएपुरिया हुआ तथा बाद में शिवपुरिया हो गया। मुलहा - हैहयो के बनवाए छातीस्गढ़ो में मुल्दागढ़ एक गढ़ है इसी गढ़ के नाम पर यहाँ रहने वाले हैह्यो का गोत्र मुलहा हुआ। खर्रा - खारोंदगढ़ के नाम से ही यहाँ के रहते वाले ताम्रकारो के गोत्र खर्रा हुअ. यह भी छतीसगढ़ में एक गढ़ है. महलवार- हैहय नरेशो द्वारा निर्मित छतीस्गढ़ो में महलवार गढ़ एक गढ़ है यहाँ के रहने वाले हैहय वंशजो के गोत्र महलवार पडा, महलवार भी इधर उधर जा बसे है. सोंठो - हैहय नरेश सूर्यदेव का राजधानी सोंठी थी , इनके वंशजो का गोत्र इसी कारन से सोंठी पद. बरहा- इस गोत्र के नामकरण होने के २ कारन पाए जाते है और यह २ नामो से भी प्रख्यात है, बरहा और नरबरहा इस प्रकार ये दो गोत्र हुये. प्रथम मंडला के पास स्थित बारहा ग्राम है, इसी बारहा ग्राम से बारहा गोत्र उत्पन्न हुअ. दूसरा हैहयो के शासन प्रबंध में बारह गाँव के ऊपर जो अधिकारी होता था उसे बारहा कहा जाता था . इसीलिये इनका गोत्र बारहा रहा और कही कही इन्हें नरबारहा भी कहते है. बडवार  - मिर्जापुर जिले में बढहर नामक स्थान से इस गोत्र बडवार हुआ . तलहा - तल्हारी ग्राम से यत्र तत्र बसने वालो का गोत्र तलहा पडा, झाझाराया-झाझन नगर हैहय नरेश जाजल्देव का बसाया हुआ है. इस प्रकार से यहाँ के रहने वाले हैहय तम्रकारो का गोत्र झाझाराया हुआ , इसी प्रकार से उसेवा नामक नगर के रहने वाले उसेवा हुए, अप्भ्रन्सता के कारण ये कही कही उसेका  और कही कही उसेवा बोले जाते है. रतन पुर हैहय वंशी क्षत्रियो की मुख्य राजधानी होने के कारन यहाँ के निवासी रतन पुरिया गोत्र से प्रसिद्द हुये. लुह रौत रतनपुर राज्य के २ भाग हुए थे. रतनपुर और रायपुर की लुहरी शाखा से लुहरौत गोत्र बन गया . इन गोत्रो के अलावा हैहयवंशी क्षत्रियो (कान्स्य्कारों , ताम्राकारों ) में और भी अनेक गोत्र है, जिनके नामकरण होने की जानकारी प्राप्त है. इन गोत्रो के कुछ नाम नीचे दिए गए  है .....

Sahspuria - Haihay Yashoraj rule on receipt of the Haihay Vanshjo every where to be found here and there who have settled Sahspuria He told his tribe, in which corruption Sahspuria, Capuria in interpretation later Shivpuria has occurred.Mulha - Haihy Muldagadh to build up a fortress, built 36gadh. The stronghold of the clan's name Mulha Hahiy vanshi was living here.Kharra - Kharondgadh Tamrkar's who lived here in the name of the tribe was Kharra. It also has a stronghold in Chhattisgarh.Mahlwar - Haihay Naresho Mahlwar defenses to build up a fortress built by 36 gadh Haihay Vanshis living here had Mahlwar the tribe, which inhabited Mahlwar still be around.Sontho - Surydev King of Sonthi capital was due to the clan of theirHaihay Vanshjo had Sonthi.Barha - 2 due to the naming of this tribe are found and it is known by two names, Narbarha Barha and thus find the clan. Mandla is located near the first Barha village, the tribe generated Barha huh Barha grams. The second Haihays administration over twelve village officials who had called him Barha. So they called and said they Narbarha is also known as the tribe's Barha.Badwar - Mirzapur district Badwar Badhar was a place called the tribe.
Talha - Talhari grams here and places of residence of the clan members had Talha. 
Jhajharaya - Haihay Jajn city was built by King Jajallladev. Thus, the tribe Jhajharaya Tamrkars Haihay living here, the same way ----Usewa Usewa living in the city, causing Apbransta and said Useka, Usewa are spoken.Due to the capital's main pur Haihay rattan reed pipe Kshatris rattan Puria The inhabitants are known to the tribe.Luhrut Ratanpur were 2 parts of the state. Luhri branch of the clan became Luhraut Ratanpur and Raipur. Among these Gotras Hahyvanshi Kshtri's (Kansykar, Tamrakar) and many gotra (clan 250's) which is stated to be named. Some of these names are given below Gotra's .....
      आधुनिक समय में अधिकांश हैहयवंशी क्षत्रिय हयारण गोत्र शब्द का प्रयोग अपने नाम के साथ करते है. हयारण का अर्थ है -----"हय + अ  + रण  " 
हय ययाति बंशे कश्चिद् राजा बभूव 
आसम्यक प्रकारेण 
रण मध्ये तिस्ठ न्ति 
नास्माद हेतुना हयारण पद्मुच्यते .

भावार्थ: महाराज हैहय की दक्ष संताने " हयारण " कहलाई . हैहय वंशी क्षत्रिय रण कौशल में इतने अधिक निपुण थे कि रण क्षेत्र में वे हाहाकार मचा देते थे इस कारण से ये " हयारण कहलाये . यह कोई गोत्र नहीं है, केवल मात्र " पद " है. श्रीमती कमला चिन्नौरिया द्वारा लिखा गया " हैहय वंश का इतिहास" में हैहय वंशियो के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दी गई है. 
हैहय वंशियो का गोत्र कौशिक देव संकर्षण , बृक्ष वाट, वेड-यजुर्वेद , शाखा-आश्वालायन, प्रबर ३ से है. प्रथम कौशिक, द्वितीय असित, त्रित्तीय देवल , नेत्र याज्ञवल्क्य , सूत्र चौआ ९, देवी भद्रकाली , और गुरु का नाम देवल है. Argument: the master chef Haihay children "Hayarn" was called. Haihay Kshatriya descent maneuvers had accomplished so much, in the Rann of this reason that they would cry "Hayarn" to be called. This clan is not just mere "post" is. Written by Mrs. Kamla Cinnauria "Haihay Dynasty History" provides detailed information regarding the Haihy Vanshis kshatris.

Haihay Vanshi drawn Dev Kaushik's tribe, banyan tree, Vedas - Yajurveda, branch - Aswalayn, Prabar is 3. First Kaushik, second Asit, Deval Trittiy, eye Yajnavalkya, formula Chaua 9, goddess Bdrakali, and teacher's name is Deval.
1-पटनिया (patania)
2-लुह्रोत या लुह्रौत (luhrot, luhraut)
3-उकासे (Ukase)
4-अत्री (atri)
5-बुध्वनिया (budhvaania)
6-नरवरिया या नेवरिया (Narvaria or Newaria)
7-शिवपुरिया (shivpuria or sahaspuria)
8-धुषा धुचहा  (dhusha, dhuchchuhaa)
9-महलवार (Mahalwar)
10-बडवार (Badwaar)
11-उसेवा (Usewa, Useka)
12-सखिया (Sakhia)
13-धुवेल (dhuwel)
14-खमेले (Khamele)
15-करैया (karaiya)
16-परमार (Parmaar)
17-लखेटे (Lakhete)
18-कांता, कांटा कांपा  (Kanta, Kaantaa ,kanpa)
19-चौहरिया, चहारविया , (Chauharia, Chaharwiya)
20-जसेठ, जसाठी (jaseth, jasathi)
21-मुलहा (mulha)
22-सोंठो (Sontho, Sonthi)
23-ताल्हा , तेल्हा,  तिलहा (Talha, Telha)
24-रतन पुरिया (Ratanpuria)
25-देवपुरिया (Devpuria)
26-बघेल (अब यह एक अलग जाति है ) (Baghel)
27-पैगवार (Paigwar)
28-खुटा (khutaa)
29-खुटहा (Khutha)
30-बरैया , बराया (Baraiya, Baraya)
31-हतोल (Hatol)
32-गुढा (Gudha)
33-विल्केट , बिलकता (Bilket, Bilkait)
34-मेवाड़ी (Mewadi, Mewari)
35-मेवाती (Mewati)
36-कर्रा , खर्रा (karra, Kharra)
37-बरहा (baraha)
38-झाझाराया, झाझरी (Jhajhari) (Jhajharaya)
39-लुह्रौत , लोह्रौत (Luhraut, Lohtraut)
40-कलचुरी (अब यह एक अलग समाज है ) (Kalchuri)
41-जसाठी (Jasathi)
42-बडोनिया (Badonia)
43-बुदैया (Budaiya)
44-सूर्यमुखी (Soorymukhi)
45-छिपा (Chhipa, Chhippa)
46-चौहान , चौधरी , चौधारिया, चौधरिया, चौधरी (Chaudhariya, Chaudhri) (Chauhan, Chaudhri, Chaudharia)
47-गहलौत , (अब यह एक अलग समाज है ) (Gahlaut, Guhlaut)
48-पटनिया , पटनिया (Patnia, Patania)
49-जराठे (Jarathe)
50-गाढ़ा, मोटा (Gadha, mota)
51-रामगढ़िया (Ramgadhia)
52-लोध्र (अब यह एक अलग जाति है ) (Lodhra, lodh)
53-पचवारिया (panchwaria)
54-मेदनधिया, मेदनदिया (Mednadhiya)
55-सोनपलिया (Sonpalia)
56-महेंद्रनिया (Mahendrania)
57-सौड़ पलिया (Saund palia)
58-हरदिया (Hardiha, Hardia)
59-खानखाप्रा, खानखाप्रे, खानखखानख  (Khankhapra)
60-असल सिया, अतलसिया (Asal Sia, atal sia)
61-झामरिवल, झाम्रीवाल (Jhamriwal)
62-कूलबाल (Koolbaal)
63-अमरसरिया (Amarsaria)
64-नरेडी (Naredi)
65-मोरिया . मोर्य (अब यह एक अलग जाति है ) (Moriya, Maurya)
66-खेत्पलिया, खेरपालिया (Khetpalia, Kherpaliya)
67-आमेर (Aamer)
68-धुच्छा (Dhuchchha)
69-सेठिया , सेठ (Sethia, Seth)
70-पिनाखन , पीनाखान (pinakhan, peenakhan)
71-पहाड़ी गोटा (Pahadi Gota)
72-बलिया (Balia)
73-हयारण (Hayaran)
74-झरिया (Jharia)
75-पोन्पलिक (Ponpalik)
76-बहनिया , भानिया (Bahnia, Bhania)
77-अनन्त (Anant)
78-चासुडिया (Chasudia)
79-बांगडा , बांगडी (Bangda, Bangdi)
80-चावडी (Chawdi)
81-बावड़ी (Bawdi)
82-पुहावाड़े (Puhaawaade)
83-भाडावसिया, भाड़ावासी (Bhada Wasia)
84-भरद्वाज (अब यह एक अलग जाति है ) (Bhardwaj)
85-मवाली (Mawali)
86-मेहतर (अब यह एक अलग जाति है ) (Mehtar)
87-बंगडिया (अब यह एक अलग जाति है ) (Bangdia)
88-पलिया (Palia)
89-मेद्पडिया (Medpadia)
90-सिर्जोडिया (Sirjodia)
91-लाखे , लखपतिया (Laakhe, Lakhpatia)
92-मोहरिया (Moharia)
93-मेध धारिये (Medh dhariye)
94-सिखैया (Sikhaiya)
95- -कश्यप (अब यह एक अलग जाति है ) (Kashyap)
96 -कृष्नात्रे (Krishnaatre)
97 -शादिली या शांडिल्य मतलब विश्वकर्मा , लोहार (अब यह एक अलग जाति है ) (Shandilya, vishwkarma, Lohar)
98 -नारायण (Narayan)
99-खरवार (Kharwar)
101-छप्पा (Chhappa)
102-नारेली (Naareli)
103-अल्तास (Altaas)
104-पंच्पडिया (Panchpadi)
105-घोड्हा ,  घोरहा,  कोरहा (Ghodha)
106-नाकेडिया (Naakedia)
107-रावत (अब यह एक अलग जाति है) (Rawat)
108-सिरबैया (Sirbaiya)
109-छातीया (Chhateeya)
110-छरिया (Chharia)
111-नरेडी (Naredi)
112-बरिया (Baria)
113-वरिया (Variya)
114-सेलकी (Selkee)
115-देधवाल (Dedhwaal)
116-गिल्कता (Gilkata, Gilkatta)
117-गोते (Gote)
118-लुसाह (Lusah)
119-मोटा पहरिया (Mota pahria)
120-कुच्बंधिया (अब यह एक अलग जाति है) (Kunchbandhiya)
121-मोहरिया (Mohriya)
122-मेक्सी भाविया (Mexi, Bhaviya)
123-बिल्छारा , बिल्छरा (Bilchhara, Bilchhara)
124- उकसाया (Uksaya)
125-जखाडिया (Jakhadia)
126-नायक (अब यह एक अलग जाति है) (Naayak)
127-अतलस गंधोर (Atlas gandhor)
128-सिरवैया (Sirwaiya)
129-हल्लास (Hallas)
130-भकिया (Bhakiya)
131-भामिया (Bhamiya)
132-मेनादिया (Menadiya)
133-ग्वाला, ग्वालवंशी ग्वालेरियी(Gwala, Gwalvanshi) ये विलासपुर मे पाये जाते है 
134-अय़ॊध्य़ावासी, अयोध्यापारी(Ayodhyawasee)
135-कंजर (Kanjar)
136-अमरसरिया  ( Amarsarya)
137- अलसा  (Alsa)
138- कटिया    (Katiya)
139- अवरोहिता (Awrohita)
140- उडहा (Udhaa)
141- कन्नोड (Kannod)
142- कपिल (Kapil)
143- कठान (Kathan)
144- कठाईगर (Kathaigar)
145-कतंगी (Katangi)
146- करकस (Karkas)
147- कमण्डल (Kamandal)
148-  कांठीकांठा (Kanthi, Kantha)
149- कालाडेरा (Kaladera)
150- कसियारे (Kasiyare)
151-  नकटिया (Kankatiya)
152-  बाले (Baley)
154- कोसिक,  कोशिक,  कोशीको (Kosik, Koshik, Koshiko)
155-खरमोरिया (Kharmoriya)
156-कौशल्य (Kaushaly)
157- खमेवे (Khamewe)
158- अहवा (Ahwa)
159-  खाडन (Khadan)
160- खचीहार (Khacheehar)
161- खंगारे (Khangarey)
162- खूला (Khoola)
163- खापरे (Khaprey)
164-  खजरिहा (Khajariha)
165- खोरीवाल (Kheriwal)
166- गुलरहा (Gulraha)
167-खलचुगा (Khalchuga)
168- गढैया (Gadhiya)
169-गुरवरिया (Gurwariya)
170- पारिया (Paariya)
171- थरियाचोर (Thariyachore)
172- अमरही (Amrahi)
173- चारज (Charaj)
174- खापरा (khapra)
 175-गंधोर (Gandhora)176- चिनौरिय (Chinauriya)
177- वाल(Vaal)
178- चिचोल (Chichol)
179- चुरैट (Churait)
180- गड़ेसरिया (Ganesariya)
181-  चिड़ीमार(Chideemaar)
182- चुरकट (Churkat)
183- चौसिहा (Chausiha)
184- गिन्नोस (Ginnos)
185- चुडिहार (Chidihaar) ,
186- चौरिहा (Chauriha)
187- छारिया (Chhariya) 
188- गुर्जरिहा (Gurjariha)
189- चोरवा (Chorwa)
190- छ्पहा (Chhapha) 
191- छैवरिया (Chhaiwariya)
192- गोली (Golee)
193- पाडवा(Padwaa)
194- चंदौरिया (Chandauriya)
195- छुलहा (Chhulha)
196- छीपा (Chheepa)
197- धरियाचारे(Dhariyacharey)
198-जीवेररिया (Jeewerariya)
199- ठठार (Thathaar) 
200- चरखी(Charkhee)
201- जाजमौआ (Jazmaua)
202- टॉक (Taank)
203- पचनिया (Pachaniya) 
204- चावडिय (Chawdiya)
205- टसुआ (Tasua)
206 डेरहा (Derha)
207- थकेरिया (Thakeriya)
209- चिरैवान (Chiraiwaan)
210- हुहरवाल (Huhurwaal)
211- तौलगे (Taulgey)
212- अनन्त (Anant),
213- अगोहरी (Agohri)
214- अमनसुक (Amansuk)
215- कटारा (Katara)
216- चंद्रहार(Chandrhaar)
217- छ्पट्टा (Chhapatta)
218- मुडकता (Mudkta)
219-पहारना (Paharna)
220-भुसवारिया (Bhuswariya)
221- ढुहरा(Dhuhra)
222- पिंडारा (Pidara)
223- जंडिया (Jandiya)
224- मधुरिया (Madhuriha)
225- धोतिलहा(Dhotilaha)
226- पैगवार (Paigwar)
227- मसालीबाल (Masalibal)
228- नबाव (Nawab)
229- पैतिया(Paitiya)
230- झालाबाड़ी (Jhalabadee)
231- महआगार (Mahaagaar)
232- पचपाडिया(Panchpaadiya)
233- फतहपुरिया (Fatahpuriya)
234- डगसा (Dagsa)
235- माघवान (Maadhwaan)
236- पहाडी(pahadee)
237- बड़ोदिया (Badodiya)
238- डहरवाल (Daharwal)
239- पाटिय(Patiy)
240- बरनवाल (Barnwal)
241- लिमोड़ा (Limoda)
 धुवैल , मीतिया , बरेहा ,
तिल्या , नरहेड़ी , पंवार , बसीरया , थिनौल ,
पचगया , बडवाल , बागेटी , षीणहा ,
पचवारिया बनेटीवाल , बिनौदिया ,
दुखरिहा , पाटनिया , बस्तीगन , बेगी ,
बैहाली , धारधरेटिया , पीली , बगड़िया ,
भदौरिया , नरवरिहा , पंडा , बिचकेटा ,
भाटी , निहनवर , बघेल , बुधमनियाँ ,
भालिया , पचमडिया , बनयायन , भटिहारा ,
मनुटेरा , पहेतिया , बबेरवाल , भाल ,
मनहरियां , पीनाखान , बहेलिया , भोटे ,
भेगाड़े , मलिगा , पौसेरिया , बांह्कटा ,
मनघोरा , महिलियां , ब्यानियां , बुद्ध ,
महिबार , महुआ , बनबधिया , बदैया ,
माठनिया , माड़नया , बरैया , भरद्वाज ,
मुलतानी , मुलहा , बहादुरपुरी , भेड़मार ,
देबडा , बाजरिया , मघौनिया , ननुआ ,
 मलहस , नाग , नागर , बगरहा ,
माचेड़ीवाल , परवरिया , मूसानगरी , सवगेर ,
मेवाडियां , मेवाती , मेहदरडिया , लोह-
छुटया , मोटसरा , मोतीचूगा , मोंहरा ,
मोहरिया , मनवार , मडैहरा , रसनिया ,
राजा , राणा , रावल , रेडहार ,
रेबाडे  मौडिया , लशकरिया , लहबा ,
लाठा , लिलौरिया , रामडाढीया ,
लोगिया , , रानीचरिहा , लच्छ ,
शिवपुरिया , सजावलपुरिया , सटहा , लोघा ,
सारस , साह , सिंकरदपुरी , शिरशाह ,
सिरोही , सिसौदिया , सीसमुख ,
सरोतिया , सुनगदा , सुपहा , सुहागरे , सुहेल ,
सेठ , सेंगर , सेंदुरहा , सोंगरे , सुकरहा ,
सोंलकी , सौपुरहा ,
हरौल , हेड़ीवार , होलिया , सोनपालिया,
पाड़वा ,  हलहना , सौथपालिया ,
 भंगहा , छैलपालिया ,
गाढ़ेकुचबंधना , हंटोल , खरपुचिया , रहबार ,
महुआ , सेतकालिया , महेंद्रगड्या , सेवारिया ,
मानकरैया , शह्पुरिया , सेगाटे , कक्षक ,
क़िकट , खड्वार , उरित ,  उष्षा ,
सिखई थाविरईया I


भारतीय स्तर पर संकलित
गौत्रो की सूची
भारत सरकार के सन 1860 के 21 वे एक्ट के
अनुसार रजिस्टर्ड भारतीय हैहयवंशीय शत्रीय
महासभा , नई दिल्ली द्वारा सन 1950 में
भारत के विभिन्न प्रान्तों में रहने वाले
हैहयवंशी समाज से सम्बद्ध कसेरे , तमेरे , ठठेरे
कहलाने वालो के सभी उपभेद ( प्रांतीय स्तर
पर बने ) जहानाबादी , बुन्देलखंडी , पुर्विया ,
पछौया , छ्तीसगढ़िया , बिहारी और
राजस्थानी आदि नामों से विख्यात समाज
की जनगणना कराई गई थी I इस जनगणना के
आधार पर 246 गौत्रो की जानकारी प्राप्त
हुई I उत्तर प्रदेश में ठठेरा - कसेरा और
तमेरा तथा कुछ स्थानों पर हयारण शब्द
का उपयोग हुआ है I मध्य प्रदेश में कसेरा -
तमेरा - ताम्रकार , बिहार में कसेरा - ठठेरा -
कास्यकार राजस्थान में कसेरा - ठठेरा -
कंसारा , बंगाल में कर्मकार, उड़ीसा में
ठठारी , ठठियार महाराष्ट्र में ताम्वट ,
पंजाब - हरयाणा में ठठेरी - कसेरा तथा गुजरात
में कंसारा नामों से जाने जाते है I
हैहयवंशीय शत्रीय महासभा द्वारा प्रकाशित
"हैहयवंश" मासिक पत्रिका के चतुर्थे आवृति के
वर्ष 3 अंक 5 के प्रष्ट संख्या 9 पर 246
गोत्रो तथा कुछ अल्लो की प्रथम
सूची प्रकाशित हों चुकी है I इसके पश्चात्
अखिल भारतीय हैहयवंशी छत्रिय युवक संघ
की प्रमुख मासिक
पत्रिका "सहस्त्रबाहु" ( जयपुर से प्रकाशित )
के प्रथम अंक जुलाई , 1966 में कुछ
अल्लो को समायोजित कर 277 गोत्रो /
अल्लो की सूची तैयार हों चुकी है I

(सभी फेस बुक दोस्तों से अनुरोध है की यदि आपके गोत्र का नाम  इस  लिस्ट  में  शामिल  न  हो  तो, कृपया,  अपने  अपने  गोत्र के  नाम  कमेंट  में  लिखे , जिससे  उसे  भी  जोड़ा  जा  सके.)

pradeep singh taamer (फेस बुक)





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