शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

22 - त्रिपुरी के हैहय नरेशो के वंशावली


त्रिपुरी के हैहय नरेशो के वंशावली

ॐ गणेशाय नमो नमः 

Genealogy of Tripuris Haihay Vanshi Kshatriya
राजधानी खलारी एवम रायपुर (The Capitals Khalari and Raipur)
        पिछले पन्नो में लिखा जा चूका है की विक्रम संवत 1308 में रतनपुर नरेश भूमिसिंह (भावसिंह) का शासन था। उनके 2 पुत्र थे, रतनपुर की राजगद्दी पर प्रतापसिंह देव रहे। इनके छोटे भाई लक्ष्मी देव खलारी में रतनपुर के राज प्रतापसिंह देव शासन करते थे। लक्ष्मी देव का शिलालेख रायपुर में मिला है। शिलालेख रायपुर एवं इंडियन एंटी क्वेरी खंड 32 के पेज 83 तथा कनिगहम की आर्कलोजिकल रिपोर्ट के अनुसार यह लेख अब नागपुर के संग्रहालय में है। रायपुर नरेश ब्रम्हदेव के सम्बन्ध में नायक हाजिरादेव ने हाटकेश्वर (शिव) मंदिर की स्थापना की बम्ह्देव की वंशावली इस प्रकार से दी गई है-
            " रायपुर में एक महान प्रतापी राज लक्ष्मी हुआ उसका पुत्र सिंहन हुआ। उसका पुत्र रामचंद्र और उसका पुत्र हरिणय  ब्रम्हान था जो ब्रम्हदेव भी कहलाता था" लेख का समय फाल्गुन शुल्क अस्तमी विक्रम संवत 1458 शाके 1332 (10 फरवरी 1402) है। रामटेक के लेख में सिंहन और रामचंद्र के नाम आये है परन्तु खलारी के शिलालेख में 3 हैहय वंशी राजो के नाम है- सिंहन , रामदेव और ब्रम्हदेव। Shall not be written in the pages of the Vikram Era King Bhumisinh Ratanpur in 1308 (Bavsinh) was ruled. His two sons, Dev Pratap Ratanpur to the throne. His younger brother, the King of Ratanpur in Khalari Lakshmi Dev Dev Pratap ruled. Lakshmi Dev inscription found in Raipur. Page 83 Section 32 of the inscription Raipur and Indian anti query and report Kanigham archlogical of this article is now in the Museum of Nagpur. Raipur King Brmhdev hero Hajiradev regarding the Hatkeshhwar (Shiva) temple founded Bmhdev thus has the pedigree -

            
"A great majestic king Lakshmi Raipur Sinhn his son was born. His son and his son Ramachandra Hriny Brmhdev Brmhan which was also called the article" Time to Shake Falgun Free Astmi Vikram Era 1458 1332 (10 February 1402) is. Sinhn and interesting articles Ramtek Ramachandra name but the name of the king's descent Klari inscriptions Hahy 3 - Sinhn, Ramdev and Brmhdev.
खलारी का शिलालेख (हरि ब्रम्हदेव के सम्बन्ध में)
Khalari inscription (in respect of Hari Bramhdev)
  1. एपीग्राफिका इंडिका खंड 2 के पेज 228 के अनुसार यह लेख रायपुर संग्रहालय में रखा हुआ है। इस लेख का सम्बन्ध हैहय वंशीय राज हरि ब्रम्हदेव के राज्यकाल से है। इनके पिटा सिहन देव थे, जिन्होंने शत्रो के 18 गढ़ों को फ़तेह किया। हरि ब्रम्हदेव की राजधानी खाल वाटिका (आधुनिक खलारी जो रायपुर के 28 मील दूर है) थी। खाल वाटिका में देवपाल नाम के मोची ने नारायण का मंदिर बनवाया उस मंदिर की स्थापना के सिलसिले में यह लेख लगाया गया था। इस लेख का समय विक्रम संवत 1470 शाके 1334 माघ शुक्ल नवमी है। डा0 कील हार्न के मत में यह संवत ठीक नहीं है। सही संवत 1471 विक्रम संवत होना चाहिए। यह तिथि 11 जनवरी 1415 को पड़ती है। According to page 228 of Volume 2 Apigrafika Indica - This article is kept in the museum Raipur. This article is concerned Hahy dynasty reign of King Hari Brmhdev. Dev Sihn his father, who was Fateh Struo 18 strongholds. Hari Brmhdev capital skins Garden (28 miles away Modern Klari the Raipur) was. Skins Narayan temple built by the shoemaker in the Garden Devpal name. The temple had been established in connection with this article. Shake the time this article Vikram Era 1470 to 1334 Magh Shukla Navami. Do not honk the era of Dr. 0 spike is not right. 1471 Vikrama era era must be right. It has to date to January 11, 1415.
  2. इन दोनों शिलालेखो में जिन राजाओं के नाम आये है, वे राजा हैहय वंशा के ही वंशज है किन्तु रामटेक में लक्ष्मन मंदिर के लेख में जिन राजाओं के नाम आये है, वे राजागण देवगिरी के यादव वंशी है। हैहय और यादव वंश में समकालीन एक नाम के दो-दो राजा हुए है। इनका शासन अलग अलग ही था (मध्य प्रदेश और बरार लेखक योगेन्द्र नाथ शील पेज 40 में) देवगिरी के शासको में सिंहन और रामचंद्र के नाम आये है हो सकता है, कि देवगिरी और रायपुर नरेशो में मैत्री भाव हो, इस कारन रामटेक के लेख में तीर्थो का वर्णन लिखने के बाद दोनों वंश के राजाओं के नाम लिख दिए गए हो। यहाँ हम रामटेक का लेख भी प्रस्तुत कर रहे है।
    These two inscriptions of the names of the kings came, they Hahy dynasty descended from kings, but the kings named in the articles of the temple came Lcshmn Ramtek, they have Rajagn of Devagiri Yadav descent. Give a name to the contemporary Hahy and Yadava dynasty - has two king. His rule was different (writer Yogendra Nath modesty page 40 in Madhya Pradesh and Berar) Devagiri rulers have come in the name of Ramachandra Sinhn and may be the Devagiri and Raipur Nresho Friendship Quote this article on the Ramtek after writing a description of pilgrimage both have written the names of the kings of dynasty. Here we have Ramtek are also presented in the article.
रामटेक में लक्ष्मन मंदिर लेख और राजा लक्ष्मी देव, अमरसिंह देव और नवरात सिंह देव (Lakshman Temple article in ramtek and Raja Lakshmi dev, Amar Singh Deo and navrat Singh dev)
  • इंडियन एंटी क्वेरी खंड 37 पेज 204 के अनुसार यह लेख 80 पंक्तियों का है परन्तु बहुत सी मिट गई है। लेख के अधिक अंश में रामटेक के तीर्थो का वर्णन है। ऊपर के भाग में यादव वंश श्री सिंहन क्षेणिपातेर और श्री रामचंद्र के नाम आते है। अंतिम 2 नाम हैहय वंशी राजा ब्रम्हदेव के सम्बन्ध में है जो रायपुर और खलारी के लेख में आते है। According to clause 37 Indian anti-query page 204 this article is 80 lines but many disappear. articles describe in greater degrees of ramtek Mandir. above the Yadav dynasty come in the name of Mr. kshenipater and Mr. ramchandra sinhan. last name vanshi King 2 haihay bramhadev relationships is in Raipur and khalari articles come in.
  • रतनपुर राजधानी में विक्रम संवत 1308-1333 तक महाराज भूमिसिंह का शासन रहा। आपके पुत्र प्रतापसिंह देव जब रतनपुर की गद्दी पर बैठे तब उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मीदेव को शासन प्रबंध की सुविधा के लिए खलारी का शासक बनाया। मिले हुए शिलालेखो के अनुसार खलारी में 2 शासक हुए। सिहन देव- लक्ष्मी देव के उपरान्त आपके पुत्र सिंहन देव ने अपनी  एवं महत्वाकंछा से 18 गढ़ आस पास के राजाओं के जीत लिए। सिंहन देव के बाद रामदेव गद्दी पर बैठे। रामदेव--आपने भूनिगदेव का बध किया। आपका शासन काल विक्रम संवत 1430 के लगभग रहा। आपके उपरान्त युवराज व्रम्ह देव गद्दी पर बैठे। ब्रम्हदेव- शिलालेख खलारी एवं रायपुर के अनुसार आपका शासनकाल वि0सं0 1471 तक रहा। शिलालेखो के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है की आपने राजधानी खलारी से हटाकर रायपुर में बने, आपके समय से ही रायपुर को राजधानी बने रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, आपके पश्चात केशव देव ने राज्य संभाला।
    Ratnapura by Chef Vikram Samvat capital ruled 1307-1383 bhumisinh. your son principate dev when post of ratnapura, he ruled his little brother to facilitate managing the lakshmidev khalari, according to the ruling of shilalekho. 2 ruler met khalari. sihan dev-Lakshmi dev, dev and mahatvakancha your son considered for launching after incorporating sinhan 18 stronghold near the Kings win. after post sinhan Deo Prakash Sharma . Bhunigdev ramdev--you have your period of Vikram Samvat badh circa 1430.. vramh the Crown Prince considered for launching after incorporating your dev post. bramhadev-according to your reign khalari inscription and Raipur V0san0 until 1583. shilalekho, it appears you made in Raipur capital from khalari, you remain the capital Raipur since received the privilege ofYour post keshav dev State.
  • हैहय विवरण सार में 14 वीं सदी के अंत तक "केशवदेव" का राज्य बतलाया गया है। केशवदेव के पश्चात् जिन 14 राजाओं का विस्तृत वर्णन इस कारण नहीं दिया गया की उपरोक्त राजा रतनपुर राजधानी के  शासन करते रहे, उपरोक्त राजाओं ने रामगढ़ और रायपुर नगर बसाया किले बनवाये और कुछ विजय भी प्राप्त की। Haihay description in essence by the end of the 14th century Kingdom of "keshvadev" has been added. detailed description of the Kings after the 14 keshvadev for this reason was not given to the rule of capital above King of Ratnapura, above Kings, Ramgarh and Raipur city loss Fort banvaye and also a few victories.
  • आपका विस्तृत वर्णन रायपुर जिला गजट पेज 56 से लिया गया है। इस शासक का एक ताम्र पत्र प्राप्त हुआ है इस ताम्रपत्र की सनद आरंग के अंजूरी लोधी वंश के पास है। यह सनद राजा अमरसिंह ने ठाकुर नंदू सिंह और अंजोरी के लोध वंश के पूर्वज धरियारे को दिया था, इस सनद से ये लोग विवाह, विधवा विवाह और स्त्री के भाग जाने आदि अवसरों पर कर मुक्त थे, उस पर विक्रम संवत 1792 (सन 1735) अंकित है। नंदू ठाकुर नाराज होकर आरंग से धमतर चले गए जब सनद मिली तो प्रसन्न होकर आरंग वापस आ गए। अमरसिंह देव रायपुर वंश के अंतिम राजा थे यह विक्रम संवत 1807 तक राज्य करते रहे। नागपुर के भोसले ने इनको गद्दी से उतार कर गुजारा दे दिया था। पूना के राजा रघुजी चन्द ने रायपुर जीतकर अपने अधिकार में कर लिया तथा राजा अमरसिंह देव को केवल 05 परगने छोड़ दिए। मराठो ने अमरसिंह देव को थोड़ी सी जागीर देकर रायपुर पर पूरा अधिकार कर लिया। अमरसिंह देव नंदगांव में रहने लगे। 3 वर्ष बाद उनका स्वर्गवास हो गया।
    Your detailed description of Raipur district Gazette was taken from page 56 of the ruler is a copper sheet has received the copper scroll containing a sanad of arang anjuri of Lodhi dynasty, King is near Nandu Singh Thakur Amar Singh sanad and lodh descendants of the ancestor dhariyare anjori was given to these people by the sanad marriage, widow marriage and bride were the part of the tax exempt opportunities etc.The Vikram Samvat 1792 (February 1735) hammered by angry dhamtar from Nandu Thakur. moved arang when sanad was so pleased arang returned. Amar Singh dev was the last King of this dynasty Raipur Vikram Samvat 1807 State. do them from the throne of Nagpur bhosle maintenance was given the win Raipur Raghuji King of Poona. Chand in his possession and Raja Amar Singh dev only 05 pargane discarded. By giving a little fiefdom by Amar Singh dev maratho Raipur on rights. Amar Singh dev in nunawading. 3 years after he died.
  • नवरात सिंह देव नांद गाँव में रहते थे, इनकी पत्नी सोहाग कुंवरी से रघुनाथ सिंह देव नामक पुत्र हुआ, जिसका विवाह जमनादेवी के साथ हुआ था, जमुना देवी से देवनाथ देव हुए। मराठा राजा बिम्बा जी के बाद बिम्बा जी के वंशजो में रघुनाथ सिंह देव से यह जागीर छुड़ा ली, केवल 5 गाँव निर्वाह हेतु दिए। इसके बदले में रघुनाथ सिंह देव से मराठा राजा प्रतिवर्ष रु0-1/-(एक रुपया) भेंट में लिया करते थे। इन्ही दिनों अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठो को पराजित कर उनके समस्त राज्य को छीन लिया। कंपनी सरकार ने देवनाथ सिंह के 5 गाँव इनके पास ही रहने दिए। इस प्रकार से रायपुर के हैहय नरेशो का शासन हमेशा के लिए समाप्त हो गया।
    Navrat Singh lived in the village, wife Deb crib sohag Raghunath Singh Deo, a son of conveyor, whose marriage was with Jamnadevi, Jamuna Devi dev from devnath. bimba 18 Maratha King after living in vanshajo Raghunath Singh Deo bimba ji redeemed this heirloom, to only 5 village subsistence. instead, Raghunath Singh Deo Maratha King of the year-1/-(one rupee) calls used in the East India Company days. India defeated their entire Company maratho stripped the State. the company, Singh's Government evicted remain 5 village Devnath. thus ruled by haihay Kings Raipur forever.
रतनपुर नरेशो का शासन प्रबंध 
Governance managing Ratnapura naresh's)
इस वंश के शासको ने मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग पर शासन किया। उन्होंने बहुत प्रगति की एवं प्रजा को संतुस्ट रखा। इनके समय का शासन प्रबंध बहुत ही उत्तम था। प्रत्येक गाँव का अधीश्वर पदकिल (पटेल) कहलाता था। ऐसे 12 गाँव मिलकर एक एक "बरहा " कहलाता था। जिसका मुख्या बढ़िया (दाऊ), जो ताल्लुकेदार कहलाता था। ऐसे 7 बरहो की एक चौरासी होती थी। इसे गढ़ कहा जाता था इसी गढ़ में न्यूनाधिक ग्राम संख्या हुआ करती थी। इन गढ़ों जा अधिपति "मांडलिक" कहलाता था। पर छत्तीसगढ़ में उन्हें केवल "मंडल" ही कहा करते थे। अब भी मंडल शब्द प्रतिस्ठा का सूचक है, ये मांडलिक, राजाओ को नियमित कर तो देते ही थे पर युद्ध के समय सेना सहित मैदान में आकर राजा को सहायता भी प्रदान करते थे। 
         रतनपुर राज्य को कर देने वाले करद (कर देने वाले राज्य) राज्य 17 थे, जिनके नाम निम्न लिखित है-
Most of this dynasty shasko Madhya Pradesh ruled on the part he has grown a lot and people to manage their time stations ruled. very best. each village adhishvar padkil (Patel) was called a village such as one called "bahr" 12. whose home was fantastic (DAU), which called a telcordia beru had two such. 7. it was in the same fortress called Heartland modulator village has a number of these strongholds. "Overlord" be called malakand in Chhattisgarh, only "on board." said. still circle the word is an indicator of malakand, pratistha tyrannophobe was able to give a regular time on the force, including providing support to the King in the field.

The ratnapura by the State (the State) State 17 karad, whose names the following text-
  1. रामगढ़ Ramgadh 
  2. प्रतापगढ़ (पंडरिया) Pratapgadh 
  3. लांजी Lanjee 
  4. अम्बागढ़ चौकी Ambagadh Chaukee 
  5. बस्तर Bastar 
  6. खीर्या Kheerya 
  7. फुलझर  Fuljhar 
  8. सारंगढ़ Saraggadh 
  9. करोंद (कालाहांडी) Karond , Kalahandee 
  10. सम्बपुर Sambpur 
  11. पटना सि Patnasi 
  12. सिंह  भूमि Singh bhoomi 
  13. चंद्रपुर Chandrapur 
  14. शक्ति Shaktee 
  15. रायगढ़ Raigadh 
  16. कौडिया Kaudiya 
  17. सिरगुजा Sirguja 
          उपरोक्त करद (शुल्क देने वाले) राज्यों की संख्या समय समय पर घटती बदती रही।
महाराजा कोकल्लदेव के 18 पुत्रो में से ज्येष्ठ पुत्र मुग्धतुंग धवल ने अपनी राजधानी त्रिपुरी बने जो वर्तमान में जबलपुर से 06 मील दूर तेवर नाम से प्रचलित है जिनकी वंशावली निम्न प्रकार से है-
The above number of karad (the charge) from time to time and badti.

The eldest son of Maharaja kokalladev putro mugdhatung 18 dhaval became its capital from the present Jabalpur in tripuri 06 miles away was prevalent from that lineage is as follows-


  1. राजधानी त्रिपुरी महाराजा मुग्धतुंग धवल - शासन काल विक्रम संवत 957-892 तक
  2. राजधानी त्रिपुरी महाराजा मुग्धतुंग बाल्हर्ष केयुर्वर्ष (यवराजदेव प्रथम  - शासन काल विक्रम संवत 952-1007 तक
  3. राजधानी त्रिपुरी महाराजा लक्ष्मण राज  - शासन काल विक्रम संवत 1007-1027 तक
  4. राजधानी त्रिपुरी महाराजा शंकर गणदेव  - शासन काल विक्रम संवत 1027-1032 तक
  5. राजधानी त्रिपुरी महाराजा युवराजदेव द्वित्तीय  - शासन काल विक्रम संवत 1032-1057 तक
  6. राजधानी त्रिपुरी महाराजा कोकल्लदेव द्वितीय  - शासन काल विक्रम संवत 1057-1072 तक
  7. राजधानी त्रिपुरी महाराजा गांगेय देव  - शासन काल विक्रम संवत 1072-1095 तक
  8. राजधानी त्रिपुरी महाराजा कर्णदेव  - शासन काल विक्रम संवत 1095-1149 तक
  9. राजधानी त्रिपुरी महाराजा मशकर्ण देव  - शासन काल विक्रम संवत 1149-1181 तक
  10. राजधानी त्रिपुरी महाराजा गया कर्ण  - शासन काल विक्रम संवत 1181-1208 तक
  11. राजधानी त्रिपुरी महाराजा नरसिंह देव  - शासन काल विक्रम संवत 1208-1216 तक
  12. राजधानी त्रिपुरी महाराजा जयसिंह देव  - शासन काल विक्रम संवत 1216-1236 तक
  13. राजधानी त्रिपुरी महाराजा विजयसिंह देव  - शासन काल विक्रम संवत 1236-1239 तक
  14. राजधानी त्रिपुरी महाराजा मुग्धतुंग धवल - शासन काल विक्रम संवत 957-892 तक
  15. राजधानी त्रिपुरी महाराजा अजयसिंह देव ---------------
  16. राजधानी त्रिपुरी महाराजा त्रिलोक वर्म 
  17. Capital Maharaja Vikram Samvat tripuri dhaval mugdhatung-957-892 by period
    Yavrajdev mugdhatung balharsh keyurvarsh (the capital Maharaja tripuri first-period Vikram Samvat 952-1007 long
    Capital Maharaja Vikram Samvat Laxman Raj-tripuri period 1007-1027 until
    Capital Maharaja Vikram Samvat tripuri period gandev Shankar-1027-1032 up
    Capital Maharaja Vikram Samvat tripuri yuvrajdev period second-1032-1057 up
    Capital Maharaja Vikram Samvat tripuri kokalladev II 1057-1063-up period
    Capital Maharaja Vikram Samvat Galactic period tripuri dev-1063-1095 so far
    Tripuri capital Maharaja Vikram Samvat 1150-1157 cavender-up period
    Capital Maharaja Vikram Samvat tripuri period 1217-dev-mashkarn 1181 up
    Capital Maharaja Vikram Samvat-tripuri has aural period until 1214-1217
    Capital Maharaja narsingh dev, Vikram Samvat-tripuri period until 1208-1216
    Vikram dev Maharaja jaising-period capital tripuri Samvat 1216-1236 until
    Capital Maharaja Vikram dev-vicenza tripuri period Samvat 1236-1240 so far
    Capital Maharaja Vikram Samvat tripuri dhaval mugdhatung-957-892 by period
    Ajay Singh dev tripuri King capital — — — — — — — — — — — — — — —
    Capital Maharaja tripuri Trilok worm
     

त्रिपुरी का हैहयवंशी नरेश (The King of Tripuri)
महाराज कोकल्लदेव प्रथम व् उनकी वंशावली 
Chef kokalladev first starting their genealogy
आपका शासन काल विक्रम संवत 932 से 957 तक पाया जाता है। हैहय वंशी चेदि नरेशो में प्रतापी राजा कोकल्लदेव प्रथम का नाम आता है आपने कन्नौज नरेश भोज, रस्त्रकूत नरेश कृष्ण द्वित्तीयम चंदेल राजा हर्ष, और चित्रकूट नरेश को पराजित किया। कृष्ण द्वितीय एवं चंदेल राजाओं ने अपनी राजकुमारियो का विवाह महाराजा कोकल्लदेव के साथ किये। चंदेल नंदिनी "नद्द्देवी" से मुग्धतुंग धवल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, महाराजा कोकल्लदेव ने अपना राज्य अपने 18 पुत्रो में बिभक्त किया जिसमे ज्येष्ठ पुत्र मुग्धतुंग धवल त्रिपुरी की गद्दी पर बैठे। शेष 17 पुत्रो को प्रथक प्रथक मंडल के मंडलेश्वर बनाकर शासक नियुक्त किया। इन महा प्रतापी कोकल्लदेव का स्वर्गवास विक्रम संवत 957 को हुआ था।
Your period by Vikram Samvat from 957 932. haihay vanshi King named majestic naresho chedi comes first in kokalladev you King rashtrakuta King Krishna dvittiyam, communion kannauj belt chandel King Harsha, and chitrakoot King defeated. Krishna II and the wedding of the Emperor's kokalladev their rajkumariyo chandel Kings with. "nadddevi" mugdhatung chandel Nandini originated son named dhaval, Emperor kokalladev did your State in his eldest son mugdhatung putro bibhakt 18 which dhaval tripuri's post to the remaining 17 putro prathak prathak system. mandaleshvar appointed by ruler. arch kokalladev to majestic's demise: Vikram Samvat 933.

  • त्रिपुरी नरेश मुग्धतुंग धवल (The King of Tripuri (mugdhtung dhawal) 
आपका शासन काल विक्रम संवत 957 से 982 तक रहा। महाराज मुग्धतुंग धवल के 2 पुत्र बाल हर्ष और केयूर वर्ष हुए। केयूर वर्ष का दूसरा नाम युवराज देव था। महाराज मुग्धतुंग धवल ने अपने राज्य का विस्तार दक्षिण में पाली तक कर लिया था परन्तु दक्षिण के शासक कृष्ण राज के मंत्री कौडिन्य वाचस्पति ने उन्हें युद्ध में पराजित कर दिया और रोड़ो पड़ी नाम के 2 क्षेत्र छीन लिए। आपके बाद दोनों पुत्र क्रमशः गद्दी पर बैठे।
Your period until the chef Vikram Samvat dhaval mugdhatung 982 933 2. son hair harsh and cure year. second year cure name Yuvraj dev. expand its chef mugdhatung dhaval States in the South had to shift but South of Krishna Raj Minister kaudinya and defeated in battle by doctoral rodo was named after your son for 2 field stripped post respectively.

  • बाल हर्ष और केयूर वर्ष Balharsh and keyurvarsh

आप का शासन काल विक्रम संवत 982 से 1007 तक रहा। बाल हर्ष का शासन अल्प समय तक ही रहा, इनके पश्चात् बालहर्ष के अनुज गद्दी पर बैथे। केयूरवर्ष का विवाह चालुक्य वंश की राजकुमारी नाहला देवी से हुआ था। "चालुक्य कुमार पाल" नामक पुस्तक के अनुसार मूराज सोलंकी, केयूरवर्ष के समकालीन राजा थे। ऐसा अनुमान है की नाहला देवी मूलराज सोलंकी की पुत्री हो। रानी नहला देवी ने एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था उस मंदिर की व्यवस्था हेतु मुड्वारा तहसील का "पौड़ी" ग्राम लगाया गया था। केयूरवर्ष ने कर्नाटिक गोड़ , लाट (गुजरात), कलिंग आदि पर विजय प्राप्त की थे। लेखक भानुसिंह बघेल द्वारा लिखित "मध्य प्रदेश सन्देश" दिनांक 17-12-1962 के अनुसार राजा युवराज देव ने सद्भाव शत्रु को कुछ ग्राम दान में दिए थे, निस्पृह गुरु देव ने गोलकी मठ की स्थापना कायम की। यह गोलकी मठ भेडाघाट का चौसठ योगिनि का मंदिर या फिर रीवा नगर से 10 मील दूर पूर्व में गोरकी नामक स्थान है। आपका स्वर्गवास विक्रम संवत 1007 में हुआ। You Vikrama era rule from 982 until 1007. Hair remained short-lived reign of joy, their post-Balhrsh Bathe's brother on the throne. Keyurwars Nahla Devi was married to the princess of the Chalukya dynasty. "Chalukya Kumar Pal," according to the book Muraj Solanki, a contemporary of Keyurwars was king. It is estimated that Solanki's daughter Nahla is Mulraj goddess. A Shiva temple was built by Rani Devi recognizable arrangement of the temple of tehsil Mudwara "Podi" Village was imposed. Keyurwars the Carnatic God, column (Gujarat), were conquered Kalinga etc.. Written by author Banusinh Baghel "Madhya Pradesh message" Date 17-12-1962 Prince Dev harmony enemy the king had donated a few grams, untouched goalkeeper monastery founded by Guru Dev set. It's goalkeeper Chaust Yogini temple or monastery Bedagat Rewa 10 miles east of the city is a place called Gorky. Your departure in 1007 Vikrama era.

  • महाराज लक्ष्मण राज (Maharaj Lakshaman Raaj)
आपका शासन काल विक्रम संवत 1007 से 1027 तक रहा। कारो के तलायी शिलालेख में (लक्ष्मण राज चेदि) अंकित है। आपके पुत्र शंकरगण देव एवं युवराज देव द्वितीय थे। आपकी पुत्री का नाम बोथा देवी था जिससे तैलय नामक प्रतापी पुत्र हुआ। आपने सौरास्त्र ओडदेश पर विजय प्राप्त किया। तथा विलहरी वर्त्तमान में "कटनी जंक्शन" के करीब 12 मील दूर में लक्ष्मण सागर नामका तालाब बनवाया तथा मंत्री सोमेश्वर ने एक विष्णु मंदिर भी बनवाया। एक शिलालेख जिला छातार्पुत से 7 मील दूर "धुवेला" से प्राप्त हुआ, जिसके अनुसार लक्ष्मण राज का नाम अंकित है। किन्तु इसके संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी।
Vikram Samvat 1027 until your period from 1007. in inscriptions of poor talayi (Laxman Raj chedi) face your son Yuvraj dev and dev shankargan. II. your daughter's name was tailay, a majestic son Botha was the goddess you have conquered oddesh stressor. and people close to wheeler in katni junction "12 miles away at a pond and ocean Minister Laxman someshvar namka has a Vishnu Temple also erected an inscription from the district chatarput. 7 miles away from the "dhuvela" has received, according to which the secret name is imprinted lax. but it did not receive complete information regarding the.
  • शंकरगढ़ देव, युवराज देव द्वितीय, कोकल्लदेव द्वितीय, गांगेय देव, कर्णदेव , यश्कर्ण देव,  गयाकर्ण देव , नरसिंह देव, जयसिंह देव, विजयसिंह देव आदि (Shankargadh dev, yuwraaj dev II, Kokalldev II, Gangey Dev, Karn Dev, Yashkarn Dev, Gayakarn Dev, Narsingh Dev, Jaysingh Dev, Vijay Singh Dev Etc.)
  • शंकरगढ़ देव के भाई का नाम युवराज देव द्वितीय था। आप केवल 5 ही वर्ष राज्य कर पाए की अचानक मृत्यु हो जाने से आपके छोटे भाई युवराज देव ने शासन कार्य संभाला। आपका शासन काल विक्रम संवत 1032 तक रहा।
    Shankargarh does dev's brother was named Crown Prince dev II. you only have 5 year State could be sudden death of your younger brother Crown Prince dev, Vikram Samvat your rule works period. 1035 up.
  • महाराज युवराज देव द्वितीय के शासनकाल में मालवा नरेश वाक् पति मुंज ने त्रिपुरी पर आक्रमण किया, जिसके फलस्वरूप त्रिपुरी की काफी क्षति हुई। युवराज देव के पुत्र का नाम कोकल्लदेव द्वितीय था। मालवा नरेश ने अपने मातहत कोकल्लदेव को शासक बनाकर त्रिपुरी का राज्य सौप दिया। आपका शासन काल 1032 से 1057 तक रहा।
    Chef Yuvraj dev II in the reign of Malwa invaded the tripuri King munj speech husband, plenty of damage resulting tripuri. Yuvraj dev's son's name was King kokalladev II kokalladev to his subordinates. '' making Malwa ruler tripuri State saup. period from 1130 until 1153 yours.
  • मालवा नरेश द्वारा की गई युद्ध विनाश की पूर्ती में आपका समय व्यतीत हुआ। 15 वर्ष शासन कर विक्रम संवत 1072 में इन्होने अपने प्रतापी पुत्र गांगेय देव को त्रिपुरी की गद्दी सौप दी। Malwa King by war destruction in supplement your spend time. 1078 15 years ruled in its majestic son Vikram Samvat inhone Galactic dev tripuri coupled saup.
  • गांगेय देव बहुत पराक्रमी शासक हुए आपने विक्रम संवत 1094 में प्रयाग के राज को पराजित किया साथ ही कन्नौज से तेलंगाना तक पूर्व भाग में चालुक्य तिरहुत तक विजय प्राप्त की। इन्होने मध्य वंशियो से बांधवगढ़ जीत लिया था। अपनी इन समस्त विजयो के कारण गांगेय देव ने "विक्रमादित्य" का विरुद धारण किया। भारतीय इतिहास की रूपरेखा पेज 230 के अनुसार गांगेय देव न पालो के बल की अवहेलना करते हुए अंग (आसाम) पर आक्रमण किया। पेज 224 से विदित होता है की चेदि नरेश गांगेय देव ने चंदेलो की शक्ति के विकास में बाधा पहुचाई। गांगेय देव की इस प्रगति मय स्थिति के समय भारत में मोहम्मद गजनवी का आतंक फैला हुआ था। पर गजनवी ने भी गांगेय देव से छेड़ छाड़  नहीं की। विक्रम संवत 1087 में अरब यात्री अलबेरुनी ने इन्हें "दाहल नरेश " के नाम से संबोधित किया है। एपीग्राफिका इंडिका द्वितीय भाग पेज 43 में गांगेय देव को विक्रमादित्य की उपाधि से विभूषित किया गया है। आपके समय में सोने, चांदी और ताम्बे के सिक्के चलाये गए जिनमे सोने के सिक्के पर एक ओर "चतुर्भुजी देवी" का चित्र तथा दूसरी ओर श्रीमद गांगेय देव अंकित है। आपके बड़े पुत्र का नाम कर्णदेव था। भारतीय इतिहास की रूपरेखा 230 पेज में उसका नाम लक्ष्मी कर्ण भी लिखा हुआ है। महाराज गांगेय देव का स्वर्गवास विक्रम संवत 1095 में प्रयाग (इलाहबाद) में अक्षयवट के नीचे हुआ। वही पर आपकी सौ रानियों अपने पति के साथ सती हो गई। वर्तमान समय में वह अक्षयवट मिलिट्री विभाग के अधीन किले के अन्दर है। You have a mighty rulers in 1094 Vikram Era Galactic Dev Prayag Raj Telangana defeated the former part of the Kannauj conquered by the Chalukya Tirhut. He won Bandhavgarh from mid Vanshio. Due to all these Vijayo your galactic Dev "Vikramaditya" holding the Virud. According to page 230 outlines the history of Palo force in defiance of the galactic limbs Dev (Assam) invaded. Page 224 of the Chedi is known galactic ruler hinder the growth of the power of Chandelo posing Dev. Galactic dev muay the progress of state terror in India was Mohammed Ghazni. Ghazni, not tinkering at the galactic dev. Vikram Era 1087 Arab traveler Alberuni these "Dahl King" is addressed by name. Apigrafika Indica page 43 of Part II has been awarded the title of Vikramaditya galactic Dev. Your time in gold, silver and copper coins, gold coins which were taken on the side "Cturbhuji Goddess" and the other side of the picture is imprinted Srimad galactic dev. Karndev your son's name was. Page 230 outlines the history of the hypotenuse is even written his name Lakshmi. Vikram Era Galactic Emperor died in 1095 Dev Prayag (Allahabad) was below the Akshyvt. The same with your spouse, your hundred queens become sati. At the present time he is in Akshyvt military fortress of the Department.
  • कर्णदेव भी अपने पिटा की भांति पराक्रमी थे, उन्होंने अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की। जीते गए राज्य - चोल, पांडव, केरल, कालिंजर। अंग, बंग, कलिंग अंग बंग एवं कलिंग। इन्होने मध्य भारUत के तुर्को को हराया तथा विहार के चंपारण क्षेत्र पर अपनी प्रभुता कायम की। इस प्रकार उनके शासन राज्य की सीमा केरल से हिमालय तक तथा मालवा गुजरात से बिहार तक हो गई थी। इस समय हैहय वंशियो का उत्कर्ष चरम सीमा पर था। बनारस का कर्ण मेरु मंदिर आपके ही द्वारा निर्मित कराया गया, त्रिपुरी के पास कर्ण बेल नामक नगर बसाया गया, ये दोनों आज भी विद्दमान है। त्रिपुरी के इस प्रप्तापी शासक से भारत के कुछ ही राज्य शेष थे। जो मुक्त थे। परन्तु भाग्य ने बदलाहट ली और विक्रम संवत 1137 में मालव नरेश उदियादित्य ने मालव राज्य जीत लिया। भारत की नयी कहानी के लेखक इश्वरी प्रसाद, इलाहबाद सन 1939 के पेज 138 के अनुसार राजा कर्ण देव को चंदेल शासक कीर्ति वर्मन ने हराया था। आपका विवाह हुण राजा की राजकुमारी अव्वल देवी से हुआ, आप से सम्बंधित एक ताम्र पत्र की  भी प्राप्ति हुई जिसके अनुसार "प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन" द्वारा श्री वासुदेव् उपाध्याय में देखा जा सकता है। इस ताम्र पत्र में अंकित श्लोको की संख्या लगभग 48 है इस पत्र के नीचे संवत 753 गल्फुं वादी 9 सोम अंकित है। यह अंकित संवत चेदि संवत  ही है। 
  • महाराज यश्कर्ण देव का शासन काल 1149 से 1181 तक रहा यशकर्ण देव महाराज कर्णदेव के उत्तराधिकारी थे, आपका विवाह धार के राजा उदयादित्य की राजकुमारी श्यामला देवी से हुआ। जिससे गया कर्ण नामक पुत्र हुआ। यश्कर्ण ने अंदर पर चढाई कर उसके राजा को पराजित किया, किन्तु कन्नौज के राजा द्वारा यह राज्य पुनः छीन लिया गया। आपने अपनी पुत्री की शादी में बांधवगढ़ बघेलो को दहेज़ के रूप में प्रदान किया था। यह बांधवगढ़ इनके अजा गांगेय देव ने मद्द्य नरेशो से जीता था। पेज 227 व् 228 के अनुसार सोलंकी राजा जयसिंह ने यश्कर्ण से मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये थे, मालवा के राजा भोज के उत्तराधिकारी राजा जयसिंह के राज्य का बहुत से भाग यश्कर्ण के अधिकार में था, परन्तु भोज के भाई उदयादित्य ने मालवा का वह भाग जो यश्कर्ण के अधिकार में था, करीव विक्रम संवत 1155 में यश्कर्ण से छीन लिया। आपके सम्बन्ध में एक ताम्रपत्र जबलपुर नगर में प्राप्त हुआ था जिसके श्लोको की संख्या 21 है। ताम्र पत्र के विस्तृत विवरण (प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन) नामक पु्स्तक में देखा जा सकता है। 
  • महाराज गयाकर्ण यश्कर्ण के बाद गद्दी पर बैठे, इनका शासन काल 1181 से 1208 तक रहा। इनका विवाह मेवाड़ के राणा जयसिंह की राजकुमारी अल्हण देवी से हुआ जिससे नरसिंह देव, जयसिंह देव नाम के 2 पुत्र एवं सोमेशवरी नाम की एक कन्या का जन्म हुआ। सोमेश्वरी देवी का विवाह अजमेर के राजा विग्रह राज चतुर्थ को ब्याही गई, इन्ही विग्रह राज को दिल्ली नरेश अनंगपाल की पुत्री व्याही गई थी। इस प्रकार विग्रह्राज की 2 रानिया सोमेश्वरी देवी तथा कपूर देवी (कमलादेवी) थी। विग्रह्राज के पुत्र पृथ्वीराज जिन्हें दिल्ली के शासक अनंगपाल ने निःसंतान होने पर अपने नाती पृथ्वीराज को दिल्ली के राजसिंहासन पर विक्रम संवत 1220 में बैठाया। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहार गयाकर्ण के भी नाती थे। 
            सीहोरा तहसील के बहुरि बंद ग्राम में एक मूर्ती पर लेख लिखा है की जबलपुर के समीप गयाकर्ण का सामंत (रास्त्र कूट वंश) गुल्हण देव राज्य करता था। 
            लेवर का शिलालेख जिसमे चेदी  संवत 902 लिखा है, से इनका शासन काल विक्रम संवत 1208 तक होने का  मिलता है। लक्ष्मीशंकर कृत चौलुक्य कुमार पाल पेज 122 के अनुसार जब कुमार पाल सोमनाथ की यात्रा को जा रहा था, उस समय गुप्तचरों से पता चला की त्रिपुरी नरेश गयाकर्ण आक्रमान को आ रहे है। यह सुनकर कुमार पाल किंकर्तव्य विमूढ़ सा रह गया। इसी समय एक विशेष घटना हुई, गयाकर्ण के नेत्रत्व में उसकी सेना रात्रि में  आगे बढ़ रही थी, राजा गयाकर्ण सेना के विल्कुल पीछे थे, वे हठी पर सवार थे एवं गले में सोने का हार पहने हुए थे,रात्रि में निद्रा वश वे वृक्ष की डाली को नहीं देख पाए उनके गले का हार फंस गया हिस्से महाराज गयाकर्ण की मृत्यु को गई। इसी पुरस्तक के पेज 53 में गुजरात के भीमपाल और त्रिपुरी के कर्णदेव मी मित्रता बताई गई है। 

  • महाराज नरसिंह देव का शासन काल 1208 से 1216 तक रहा। इनका समय युद्ध में ही व्यतीत हुआ। कुमारपाल चालुक्य और चंदेल राजा मदन वर्मा ने युद्ध करके त्रिपुरी राज्य को काफी क्षति पहुचाई। इस युद्ध की पुस्टी चालुक्य कुमार पाल पेज 106 में इस प्रकार से होती है। चेदिराज (त्रिपुरी)की शक्ति तथा गर्व का मर्दन कर  कुमारपाल की सेना ने रेवा नदी के तट पर अपना शिविर स्थापित किया। सैनिको द्वारा रेवा नदी के घड़ियालो को मारने तथा उपवनो को क्षतिग्रस्त करने का उल्लेख मिलता है। चालुक्य कुमारपाल का शासन काल विक्रम संवत 1199 से 1230 तक पाया जाता है। इससे नरसिंह देव और कुमारपाल के युद्ध की पुस्ती होती है। नरसिंह देव के पराजित होने से त्रिपुरी की शक्ति क्षीण हो गई जिससे पूर्वजो द्वारा जीते गए सभी रजवाड़े स्वतंत्र हो गए। अब केवल त्रिपुरी क्षेत्र ही हाथ में रहा। नरसिंह देव के पश्चात त्रिपुरी राज्य का वैभव दिनों दिन क्षीण होता गया 
  • राजा जयसिंह देव का शासन काल 1216 से 1236 तक रहा। जयसिंह की रानी का नाम गोसल देवी था। रानी के नाम पर गोसलपुर नगर वसाया गया। जयसिंह के शासन के समय देवगिरी नरेश यादव जैतुगी द्वारा त्रिपुरी में युद्ध हुआ। त्रिपुरी को और भी अधिकाधिक् क्षति पहुची। इसी समय रतनपुर नरेश जाजल्लदेव द्वित्तीय जो जयसिंह के ही कौटुम्बिक भाई थे, जयसिंह के कौमोमंडल क्षेत्र पर अधिकार कर लिया गया। इस प्रकार त्रिपुरी राज्य की सीमा काफी कम हो गई। राजा जयसिंह स्वर्गवासी होने पर त्रिपुरी की गद्दी पर विजयसिंह देव बैठे। 
  • राजा विजयसिंह देव का शासन काल 1236 से 1239 तक मात्र 3 वर्ष रहा। थोड़े समय पश्चात ही विजयसिंह देव के स्वर्गवासी हो जाने के कारन राजमाता "गोसल्देवी" ने राज्य का कारभार संभाला। इनके समय में यदुराई गौंड जो पहले लांजी (लंजिका)के मंडलेश्वर हैहय नरेश के यहाँ नौकर था उसका विवाह एक गौंड राजा की एक मात्र संतान रत्नावली से हुआ। इस प्रकार वह नौकर से एक गौंड नरेश बन गया। समय पाकर उसने त्रिपुरी राज्य पर आक्रमण कर अपना अधिकार जमा लिया इस प्रकार त्रिपुरी सदा के लिए हैहय कलचुरियों के हाथ से जाती रही। विजयसिंह के बाद आपके वंश में अजयसिंह देव और उनके पुत्र त्रिलोक्य ऋषि रहते थे, जिनके नास्तिक होने के संदेह में शासन की ओर से त्रिपुरी नगर छोड़ने का आदेश मिला, श्री जाबालि ऋषि त्रिपुरी से 06 मील की दूरी पर अपने कुछ शिष्यों के साथ रहने लगे। उन्ही जबालि ऋषि के कारण त्रिपुरी का विनाश एवं जबलपुर जैसे विशाल नगर का उदय हुआ। श्री झा ने वहां पर मिले एक शिलालेख का भी वर्णन दिया है। जिसमे जाबलिपत्तन (जाबाली नगरी) का उल्लेख है। कालांतर में यही नाम परिवर्तित होकर जबलपुर के नाम से प्रख्यात हुआ। विभिन्न विद्वानों में मतानुसार "सुरभी पाठक" नाम का एक ब्राह्मण था जो यदुराई गौंड का मार्ग दर्शक (मंत्री) था जिसकी सहायता से यदुराई गौंड को गढा का राज्य प्राप्त हुआ। सुरभी पाठक की ही सहायता से यदुराई गौंड ने त्रिपुरी पर विजय प्राप्त की। उपरोक्त दोनों घटनाओ से प्रतीत होता है की शायद सुरभि पाठक जाबाली ऋषि के शिष्यों में से एक कोई रहा होगा।

    प्रदीप सिह तामेर
    इलाहाबाद