शनिवार, 29 दिसंबर 2012

14 - कांस्यकार शाखा का उदय

      महाराजा सहस्त्रबाहु की उत्तर कालीन सन्तति  एवं     
                       कांस्यकार शाखा का उदय  



Emperor of the North Carpet progeny and Shstrbahu                        Rise of Kansykar branch
                श्री मदभागवत  पुराण के मतानुसार युद्ध में जो क्षत्रिय परशुराम जी से भयभीत होकर बिभिन्न  पर्वत श्रेणियों में छिप गए थे उन समस्त क्षत्रियों को कश्यप मुनि  के द्वारा सादर आमंत्रित किया  गया, क्युकी शासन  सूत्र सम्हालना  ब्राम्हणों के वश की बात नहीं थी। श्री परशुराम जी द्वारा विजित एवं  प्रदत्त  राज्य कश्यप मुनि ने क्षत्रिय कुलों में  बिभक्त कर दिए गए। सहस्त्रबाहु के वंसज जयध्वज को भी उनका राज्य उन्हें पुनः वापस कर दिया गया। जयध्वज ने अपनी राजधानी वाराणसी (बनारस) को बनाया। उनकी रानी सत्यभू से ताल्जंग की उत्पत्ति हुयी। तालजंग  से वीतिहोत्र भोज , अवन्ति , स्वयंजात शोडयकेय  100 पुत्र पैदा हुए। रानी सुभंगा से 09 पुत्र उत्पन्न हुए . जिनमे से ज्येष्ठ पुत्र का नाम अनंतदेव था।
               पदमपुराण कालिका महात्यम के निम्न श्लोक के अनुसार वीर सेन के पुत्र प्रपौत्रो द्वारा आजीविका हेतु कांस्य वृत्ति अपनाने का स्पस्ट उल्लेख मिलता है। Mr. Parshuram Ji Won and paid by the State of Kashyapa Muni Kshatriya clans were Bibkt. Descendants of the state Shstrbahu Jaydwaj also been returned to them. Jaydwaj the capital Varanasi (Benares) made. Origin of Taljng arising from their queen Satybhu. From Taljng Vitihotr banquet, Avanti, Swynjat Sodykey 100 sons were born. Queen Subnga son was 09. Anantdev which was the name of the eldest son.

               
According to these verses of Kalika Pdmpuran Mahatyam livelihood by Prputro for heroic son of Sen. Bronze - aspiring mentions the obvious.
सोम्वंशो महाराजा कृतवीर्यात्मजोर्जुन :
तस्यान्वये समुत्पन्ना वीर सेनादयो नृपा :
तेषां मप्यन्वये शूरा: कांस्य वृत्यु पजीवन:
कंसारा इति  विख्याता: कालिका यज्नेरतां 
भावार्थ: चन्द्रवंश में महाराज क्रत्वीरी के पुत्र सहस्त्रबाहु अर्जुन हुए। सहस्त्रबाहु के वंशज वीर सेन राजा  हुए। उसी कुल परम्परा में उत्पन्न होने वाले वीरसेन के पुत्र, पौत्र  और प्रपौत्रों  ने कांसे के व्यापार द्वारा अपनी आजीविका प्रारंभ की। ये कांसार /कंसार /कसेरा /कसेरे/ताम्रकार के नाम से प्रख्यात हुए और ये लोग माँ देवी कालिका का पूजन करते थे।
             इसी तथ्य की पुस्ती कल्पतरु नामक मराठी ग्रन्थ द्वारा भी होती है। उसमे जो 04 राजकुमारो के नाम आये है, वे इन्द्रसेन, भद्रसेन, रुद्रसेन और धर्मपाल थे। जिन्होंने कांसे , पीतल के बर्तनों का व्यवसाय किया। इन शूरवीर भाइयो का युद्ध दक्षिण के कान्तिपुर के चोल नरेश से हुआ था। युद्ध के परिणाम स्वरूप धर्मपाल का विवाह पराजित चोल नरेश की पुत्री चन्द्रगुप्ता के साथ हुआ। विवाह के पश्चात् धर्मपाल अपनी राजधानी महिस्मति को लौटे। धर्मपाल के पुत्र उद्धरण देव ने हैहय कुल गुरु एवं कुल रक्षक जी महाराज कर्ण मंडल ऋषि के वंशजो को 07 ग्राम आजीविका चलाने हेतु दान में दिए गए। The chef Kratwiri in Chandra's son Arjun Shstrbahu. The descendants of the heroic king Shstrbahu sen. Arising in the heritage of persica son, grandson and bronze Prputron the business started by his livelihood. These Kansar / Kansar / plumber / Kssere / Coppersmith / Tmer / Tmta known to the mother goddess Kalika and they used to worship.

             
This fact is confirmed by Kalpataru called Marathi Granth. He has been named to the 04 Rajkumaro, they Indrasen, Bdrasen, Rudrasen and were Dharampal. Who bronze, brass business of pottery. These brave brothers and sisters to the south of the war was the Chola King of Kantipur. Dharam result of the war with Chandragupta was married to the daughter of Chola King defeated. Mahismti Dharmapala returned to his capital after marriage. Quotes son of Dharam Dev Ji Maharaj ear Hahy total T and total support to the Board of sage Vanshjo Donated to 07 grams livelihood.
 से ठठेरा, हमें पढ़ना है,
काम यह अभी करना है,
आओ ठठेरे से मिलाऊँ,
उसके बारे में बताऊँ,
ठठेरा बरतन है बनाता,
मेहनत की रोती है खाता,
गाँव-शहर में घूम-घूमकर,
अपना काम वह करते जाता,
सबको बाबू, भइया कहता,
सादगी से है वह रहता,
मन लगाकर करे अपना काम,
काम के बदले पाए उचित दाम,
उससे सीख तुम भी ले लो भाई,
ईमानदार बनो, ठग नहीं, मेरे भाई।।

जानकारी के लिए महाराज सहस्त्रबाहु के वंशावली निम्न प्रकार से है 
For information follows the lineage of King Shstrbahu
द्वापर युग में हैहय वंश 
Dwapara age descendants Haihayvansh
महाराजा सहस्त्रबाहु के वंशजो में महाराज दुर्जय एवं विष्णु देव के पश्चान सही एवं क्रमबद्ध वंशावली देखने को मिलती है किन्तु द्वापर युग में हैहय वंश की क्रमश : वंशावली प्राप्त होती है जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है----Shstrbahu Maharaja's formidable and Vishnu Dev Vanshjo right after the chef observes and records sorted, but in Dwapara Yuga Hahy lineage respectively lineage is derived. Which can be understood as follows ----
महाराजा सुजाति 
Maharaj Sujaati

युगों में उपरांत पुन: महाराज सुजाति के द्वारा हैहय वंश का प्रादुर्भाव होता है। नर्मदा नदी के तट पर सतत महेश्वर नामक नगर अपनी रानी महेश्वरी के नाम पर महाराज सुजाति द्वारा बसाया गया, परन्तु राजधानी मंडला नमक नगर को बनाया। इनके पुत्र भोज इनके उत्तराधिकारी बने। 
After ages again by chef Sujati Manifests Hahy descent. Maheshwar, a town on the banks of river Narmada continuous Maheshwari name chef Sujati founded by his queen, but the capital city made ​​naamak Mandla. His successor was his son banquet.
महाराज भोज (Maharaj Bhoj)
महाराज भोज ने भी अपनी राजधानी मंडला नगर को बनाये रखा एवं कठिन परिश्रम कर राज्य को सुव्यवस्थित किया। आपकी 06 रानिय थी जिनके नाम क्रमश : इन्द्रमती, सुमुखी, दुर्मुखी, प्रेमा, विशाला और विजया है। इनके बड़े पुत्र का नाम आवर्तय  था। Mandala also the capital city of banquet chef kept working hard and streamlined state. Your 06 was named Rania respectively Indramti, Sumuki, Durmuki, Prema, is elaborate and Vijaya. His eldest son was named Awarty.
महाराज आवर्तय  (Maharaj Awarty)
सिन्धु नरेश अनुसन की पुत्री से इनका विवाह हुआ। इनके पुत्र का नाम तौन्डिक था। इन्होने अपनी राजधानी मंडला से हटाकर महिष्मति को बनाया। महाराज आवर्तय के उपरान्त राज्य सिंहासन पर बैठने वाले राजा गण  निम्न प्रकार से हुए .....
तौन्डिक, तौन्द्केय, भारत, सौजत, बषोदय , मधु, ब्रषण देव, सतपा, सरिश्राप, सुषेण , सुमर्मा, कीर्ति, कोणप सेन, और सुधुप्त। He married the daughter of King Anusn Indus. They had a son named Tundik. He moved his capital from Mandla made ​​Mahishmti. Awarty chef who ascended the throne after the King s were as follows .....

Tundik, Tundkey, India, Sujt, Bsoday, honey, Brsn Dev, Satpa, Srisrap, Susen, Sumrma, Keerthi, Konp Sen, and Sudhupt.
महाराज सुधुप्त (Maharaj Sudhupt)
उपरोक्त वंश श्रंखला में महाराज सुधुप्त एक प्रतापी, शूरवीर हैहय नरेश हुए। मरू देश के नरेश उग्रधन्वा की पुत्री कृपा वती से आपका विवाह है एवं पुत्रएस्टी  यज्ञ करने पर देवा सैम 3 पुत्र प्राप्त हुए। जिनके नाम क्रमश : नील्ध्वज , हन्श्ध्वज और मोरध्वज थे। इन्ही 03 पुत्रो में अपना सम्पूर्ण राज्य विभक्त कर दिया। प्राप्त राज्य में नील्ध्वाज ने महिष्मती, हंश्ध्वाज ने चंद्रपुर (चम्पक्पुरी) जिसको वर्तमान में चन्द के नाम से जाना जाता है। मोरध्वज ने रतनपुर में अपनी राजधानी बनाई।Sudhupt cook a majestic descent in the above range, the knight Hahy King. Desert country, daughter of King Ugrdnwa Kripawati Putrsti to sacrifice your marriage and three sons Sam received the medication. Namely respectively Nildhwaj, Hnshdhwaj and were mordhwaj. These 03 Putro divided his whole kingdom. The state received Nildhwaj Mahishmti, Hnshdhwaj the Chandrapur (Cmpakpuri), which is currently known of the protractor. Mordhwaj he made ​​his capital at Ratanpur.
महिष्मति नरेश नीलध्वज 
Maharaj Neeldhwaj
महाराज नीलध्वज का विवाह अग्नि देव की पुत्री जवाला देवी से हुआ था, जिनसे प्रदीप कुमार नामक पुत्र हुआ।
        जब पांडवो ने अश्वमेघ यज्ञ हेतु श्रृंगार युक्त कृष्णाश्व को छोड़ा, तब नीलध्वज नरेश पुत्र प्रदीप कुमार द्वारा उस कृष्णाश्व को पकड़ लिया गया। फलस्वरूप पांडव दल तथा नीलध्वज नरेश के मध्य युधारम्भ हो गया। जहा एक तरफ युद्ध स्थल में कर्ण पुत्र मूर्छित हुए, वह दूसरी तरफ प्रदीप कुमार भी अनुशाली की बाण वर्षा से आच्छादित होकर मूर्छित हो गए। नीलध्वज ने अपने प्रिय पुत्र की दुरावस्था देखी तब उन्होंने स्वयं आगे बढ़कर बीर अर्जुन से युद्ध द्वन्द युद्ध किया, किन्तु अर्जुन के सधे  हुए तीखे बाणो से सुराज्जित होकर उन्होंने पांडव दल से युद्ध किया। उस समय पांडव दल में भाग दौड़ मच गयी। 
अग्नि बाण का शामक वरुण बाण होता है, अर्जुन ने बरुन बाण का प्रयोग कर अग्नि के झुलसे हुए युद्ध क्षेत्र को समुद्र की लहरों से भर दिया। युद्ध क्षेत्र में स्वयं अग्नि देव प्रगट हुए और नीलध्वज नरेश से बोले की अच्छा हो यदि आप भगवान् श्री कृष्ण के चिर साथी बीर अर्जुन से संधि कर ले। अनेक प्रकार के समझाने पर नीलध्वज अपने ससुर अग्नि देव के मुख से संधि के प्रस्ताव की बात सुनकर असमंजस में पड़  गए। और परामर्श हेतु अपनी पत्नी ज्वाला देवी के पास गए, ज्वाला यथा नाम तथा गुण थी। उसने अपने पति के मुख से कायरता पूर्ण संधि का प्रस्ताव सुनते ही उसके स्वाभिमान की ज्वाला भड़क उठी और अपने पति के क्षत्रित्व को धिक्कारते हुए कहा, अच्छा होता की आप मुझे अपना मुख दिखने के पूर्व युद्ध क्षेत्र में वीर गति को प्राप्त हो गए होते। ताकि मेरा सौभाग्य पूर्ण सतीत्व योगाग्नि की दीप्ति शिखा से आलोकित हो जाता। वीरांगना के प्रेरिक दर्प पूर्ण वाक्य बाणों ने नीलध्वज नरेश के ह्रदय में क्षत्रियता का पुन : संचार कर दिया। और वे तत्क्षण युद्ध क्षेत्र में पहुचकर घनघोर युद्ध करने लगे। परिणाम अवश्यभावी था। लड़ते लड़ते न केवल स्वयं मूर्छित हो गए, बल्कि उनका प्रिय पुत्र प्रदीप वीर गति को प्राप्त हुआ। अन्ततोगत्वा पुत्र शोक की विव्हालता ने नीलध्वज नरेश को संधि करने के लिए विवश कर दिया। महाभारत अश्मेघ पर्व में स्पस्ट उल्लेख है की यह संधि असंख्य द्रव्य देकर की गयी।
        महारानी ज्वाला यह संधि सहन नहीं कर सकी। प्रतिकार की भावना को लेकर ज्वाला, महाराज शांतनु की पत्नी महारानी गंगा की शरण में पहुची। उन्हें महाभारत युद्ध के संस्मरण सुनाते हुए प्रार्थना की की जिस अर्जुन ने आपके पुत्र देवव्रत ( भीष्म पितामह) का और मेरे प्रिय पुत्र प्रदीप कुमार का हाँ में संहार किया है, उससे बदला लेने के लिए आप मुझे वरदान दीजिये। करुण  सलिला गंगा ने पुत्र शोक से विह्वल होकर आवेश में श्राप दे ही दिया। हे देवी चिंता न कर! अर्जुन की मृत्यु अवश्य हे छठवें माह में तुम्हारे द्वारा हो। यह सुनकर ज्वाला ने आदेशानुसार अपनी नश्वर देह को गंगा के चरणों में समर्पित कर दिया। देह तो अवश्य ही नस्ट हो गयी किन्तु ज्वाला के प्राणों  ने बाण का रूप धारण कर अर्जुन के पुत्र बभ्रु वाहन के तरकश में प्रवेश किया। 
          महाभारत में स्पस्ट उल्लेख मिलता है की दिग्विजय की अवधि छठवें माह में उलूपी पुत्र बभ्रु वाहन के उसी तीक्ष्ण बाण द्वारा अर्जुन की मृत्यु हुयी। इस तरह गंगा माँ की दी हुयी श्राप फलित हुयी। किन्तु भगवान् श्री कृष्ण और उलूपी के प्रयासों से अर्जुन पुन:  जीवित किये गए। नीलध्वज के उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में पुराण एवं इतिहास दोनों ही  मौन है।
            Chef Nildhwaj and Zawala Devi was married to the daughter of vulcan, which had a son named Pradeep Kumar.
        
Make up for the sacrifice Pandvo Ashwmeg Krishnashw with the left, then Nildhwaj Krishnashw that was captured by Naresh Kumar son. Yudharmb between Pandavas party and was consequently Nildhwaj King. In places where the war dead than aural son, the other side being covered by Pradeep Kumar Anushali arrows rain fell unconscious. Nildwaj of his beloved Son, he saw the long duel with Arjuna himself beyond the suds, but Arjuna and the Pandavas team of seasoned theater located in front of the sharp Bano fierce war. Pandav team participated in the race ensued.Fire Ban Ban is a sedative, Varuna, Agni Arjun using the arrow Barun charred battlefield filled with the waves of the sea. Nildhwaj vulcan revealed himself in a war zone and the king said to be good if you make it up by Lord Krishna to Arjuna bir longtime partner. Nildhwaj his father to explain a variety of vulcan seeming confused listening to the treaty proposal. Jwala Devi and his wife went for a consultation, such as name and properties of flame was. So my luck Yogagni perfect chastity is illuminated by the glistening crest. The full sentence arrowslits adventuress Prerik pragmatism in the heart of the king Nildhwaj Kshtriyta re-made communication. Going into the battle zone and they immediately began pouring war. The result was Avshybavi. Fighting not only the unconscious self, but his favorite son Pradeep received heroic speed. Ultimately, the son of mourning Viwhlta Nildwaj forced the King to the Treaty. Mahabharata mentions the obvious Ashwmeg festival was the treaty by myriad fluids.

        
Flame Queen treaty could not bear it. Contact with the spirit of retribution, queen consort of King Shantanu Phuchi in the shelter of the Ganges. Mahabharata War memoir telling them to pray, that your son Debabrata the Arjun (Bhishma Pitamah) Pradeep Kumar's and my beloved son is destruction, it is blessing me for revenge. Salilaa Karun river in charge of the curses given feverish son mourning. O Goddess, do not worry! Arjun's death must be by you in the sixth month. Hearing this, he ordered his mortal body flame dedicated to the feet of the Ganges. Contact the course ended the life of the body but also the form of arrows in the quiver of Arjuna's son entered brown vehicle.

          
Digvijay obvious is mentioned in the Mahabharata period in the sixth month the sharp arrows of the vehicle by brown Ulupi son Arjun died. Given good results arising from the curse of the holy river Ganges. But Lord Sri Krishna and Arjuna Ulupi efforts again were alive. Both in relation to the heirs of Nildwaj mythology and history is silent.


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नोट: उपरोक्त लेख हमारे पूर्वजो द्वारा लिखे गये है. जिसे इस ब्लॉग में आपकी जानकारी बढ़ने के उद्देश्य से किया गया है. आपसे अनुरोध/निवेदन है की ब्लॉग में दी गयी जानकारी का गलत उपयोग न करें.
(prdeep singh taamer)




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