महापराक्रमी -ताम्रध्वज (हैहयवंशी)
काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ।।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ।।
रतनपुर नरेश ताम्रध्वज अपने पिता के सामान धर्मज्ञ और शूर वीर थे। इन्होने अपने बाहुबल से पूर्व में कलिंग देश तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। श्री युत योगेन्द्र नाथ शील द्वारा लिखित मध्य प्रदेश और बरार का इतिहास के पृष्ठ 87 में लिखा है कुल लिंगेश्वर का मंदर जो विशेष वर्णन के योग्य है। यह मंदिर एक द्वीप पर स्थित है, किसी समय पैरी और महानदी के सगम के बीच भूमि के एक नोक निकल आई थी वही अब टापू बन गई है, यह मंदिर बाहर से 14.5 वर्ग फुट का है, इसमें राजीव लोचना समूह के प्राचीन मंदिरों के सरश एक मंडप बना है इसका आगे का भाग खुला हुआ है और बगल का भाग बंद है, अनुमान किया जाता है की कुल लिंगेश्वर के मंदिर को महाराज ताम्रध्वज ने बवाया था।
महानदी के नदी तट पर जो शिरी नरायण नामक नगर है, उसका रूपांतरण नारायण क्षेत्र के नाम से इन्ही के स्वर किया गया था। इनका विस्तृत वर्णन रतनपुर के राज्य दीवान कविवर श्री रेमराम जी द्वारा रचित " रतनपुर का इतिहास" नामक ग्रन्थ में उपलब्ध है। उसमे लिखा हुआ है कि हैहयवंशी क्षत्रिय मुकुटमणि ताम्रध्वज से ही ताम्रकार जाति की उत्पत्ति हुई, इनकी रानियों और पुत्रो में नाम भी निम्न प्रकार से है-----------
1- विजयादशमी को महारानी कुंती से चित्रध्व्ज
2- फाल्गुन पूर्णिमा को रानी सत्यभामा से उदाध्व्ज (तमारि)
3- चैत्र शुक्ल रामनवमी को रानी विशाखा से व्रश्भध्व्ज
4- बैशाख सुक्ल अक्षय तृतीया को रानी रम्भा से शूरध्व्ज (रणवीण )
5-ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को रानी चम्पावती से मित्रध्व्ज
6- आसाढ़ शुक्ल द्वतीय को रानी यमुना देवी से रुक्म्ध्व्ज एवं कमाल्ध्व्ज कमल्ध्व्ज।
ताम्रध्वज का शासन काल 412 वर्ष बतलाया गया है। प्रसिद्द इतिहास वेत्ता श्री पुत्तु लाल करुनेस ने अपने ग्रंथ " हैहय वंश " में स्पस्ट किया है की ताम्रध्वज के पश्चात् विक्रम संवत आरम्भ होने तक इनके वंश में मुख्य रूपेण पांच राजाओं का विवरण मिलता है। जिनके शासन काल की अवधि के विषय में इतिहास मौन है। वे पांच राजा निम्न प्रकार से है-
1- चित्रध्व्ज
2- विश्व्ध्व्ज
3- चन्द्रध्वज
4- मरवपाल
5- विक्रम सेन
जप तप यज्ञ दान, इनसे अति महान,
राष्ट्र धर्म श्री कृष्ण श्रेष्ठ बतलाते है।
कार्यरूप परिणित, ज्ञान गीता का लाते जो,
युद्ध अंत, वही वीर, विजय पा जाते है।
अपने हों, पराये हों, परम पूज्यनीय हो,
मात्र - भूमि रक्षा हित जो रोड़ा अटकाते है।
प्रमाण है पितामह , गुरु द्रोण कृपाचार्य,
कौरवों के पहले ही इन्हें मरवाते है।।
मुझसे मिलिए फेसबुक पर
pradeep singh taamer
ताम्रध्वज का शासन काल 412 वर्ष बतलाया गया है। प्रसिद्द इतिहास वेत्ता श्री पुत्तु लाल करुनेस ने अपने ग्रंथ " हैहय वंश " में स्पस्ट किया है की ताम्रध्वज के पश्चात् विक्रम संवत आरम्भ होने तक इनके वंश में मुख्य रूपेण पांच राजाओं का विवरण मिलता है। जिनके शासन काल की अवधि के विषय में इतिहास मौन है। वे पांच राजा निम्न प्रकार से है-
1- चित्रध्व्ज
2- विश्व्ध्व्ज
3- चन्द्रध्वज
4- मरवपाल
5- विक्रम सेन
जप तप यज्ञ दान, इनसे अति महान,
राष्ट्र धर्म श्री कृष्ण श्रेष्ठ बतलाते है।
कार्यरूप परिणित, ज्ञान गीता का लाते जो,
युद्ध अंत, वही वीर, विजय पा जाते है।
अपने हों, पराये हों, परम पूज्यनीय हो,
मात्र - भूमि रक्षा हित जो रोड़ा अटकाते है।
प्रमाण है पितामह , गुरु द्रोण कृपाचार्य,
कौरवों के पहले ही इन्हें मरवाते है।।
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kripya lekh ka durupyog na karen.
dhanywaad
(PraDeep Singh Taamer)